बुधवार, 12 जनवरी 2011

युवा जग रहे है ?

उत्तर प्रदेश के कुछ विश्वविद्यालयों में समाजवादी युवजन सभा और एबीवीपी ने जिस तरीके से कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का विरोध किया, उसे सही नहीं ठहराया जा सकता। जनतंत्र में असहमति व्यक्त करने का अधिकार सब को है, लेकिन इस नाम पर अराजकता फैलाना गलत है।

वैसे यूपी में राहुल गांधी के प्रति छात्र संगठनों का यह रवैया पहली बार देखा जा रहा है। किसी भी छात्र संगठन ने उनका इस तरह से उग्र विरोध करने का साहस पहले नहीं दिखाया था। तो क्या यह माना जाए कि राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ गिरा है? संभव है युवाओं के मन में राहुल के प्रति पैदा हो रहे असंतोष ने ही इन छात्र संगठनों का हौसला बढ़ाया हो।

दरअसल राहुल अब उस दौर से आगे निकल आए हैं, जब वह एक शो-पीस की तरह देखे जाते थे। युवा उन्हें सुनने से ज्यादा देखने में रुचि दिखाते थे। राहुल उनके लिए राजनेता से ज्यादा एक मॉडल थे, इसलिए उनकी सियासी बातों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे राहुल ने राजनीति की जमीन पर अपने पैर मजबूती से जमा लिए हैं। उनकी पार्टी ने भी उन पर पहले से ज्यादा भरोसा करना शुरू कर दिया है और अब वह कांग्रेस का चेहरा बनते जा रहे हैं। ऐसे में उनसे लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। अब यह उम्मीद की जाती है कि वह जो कहें उस पर अमल भी करें।

अब जनता उन्हें किसी तरह की रियायत नहीं देना चाहती। वह उनके एक-एक शब्द का हिसाब रखने लगी है। राहुल काफी समय से आम छात्रों से कहते आ रहे हैं कि वे राजनीति में उतरें, लेकिन राहुल अपनी पार्टी में सामान्य पृष्ठभूमि वाले युवाओं को स्थान दिलाने की कोई खास पहल करते नहीं नजर आ रहे। युवा देख रहे हैं कि कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक वैसे लोगों की भरमार है जो किसी न किसी वरिष्ठ नेता, अधिकारी या उद्योगपति के परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

आज केंद्रीय मंत्रिमंडल में कहने को तो कई युवा हैं, पर उनमें से ज्यादातर पूर्व मंत्रियों या राजनेताओं की संतानें हैं। फिर शिक्षा और रोजी-रोजगार को लेकर यूपीए सरकार की ऐसी कोई विशेष नीति भी नहीं दिखाई देती, जो व्यापक छात्र वर्ग में नई उम्मीद जगा सके। अगर राहुल गांधी युवाओं को अपनी पार्टी से जोड़ना चाहते हैं तो उन्हें यंग जेनरेशन को कुछ ठोस देना होगा। युवाओं को व्यक्तित्व के करिश्मे और स्टंट से बहुत दिनों तक भरमाया नहीं जा सकता।

सोमवार, 3 जनवरी 2011

पर्यावरण के बहाने उद्योगों को न आने देने की साजिश

नयी औद्योगिक इकाइयों को बिहार में लाने के उद्देश्य से सरकार के सकारात्मक पहल पर बड़ी संख्या में उद्यमियों ने बिहार का रुख किया है। पर बिहार में उद्यमियों के आने की तैयारी माफिया तत्वों को बर्दाश्त नहीं हो रही है। उनके सिंडिकेट ने काफी तेज गति से मिथ्यापूर्ण व गलत हथकंडे अपनाकर बिहार आ रहे उद्यमियों की राह में रोड़ा अटकाना शुरू कर दिया है। हाल ही में एक मामला बिहार में सफेद एस्बेस्ट्स चादर की फैक्ट्री लगाने को आगे बढ़ी कंपनी बालमुकुंद सीमेंट का इस परिपेक्ष्य में सामने आया है।
पर्यावरण के बहाने इस कंपनी के खिलाफ माफिया तत्वों ने आंदोलन शुरू किया है। जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि इस कंपनी को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ-साथ राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की सहमति है। दरअसल बिहार में सफेद एस्बेस्ट्स की चादर का वार्षिक टर्नओवर 250 करोड़ रुपये का है। वर्तमान में इसकी आपूर्ति पश्चिम बंगाल और थोड़ी बहुत उप्र की कंपनियों द्वारा की जाती है। इन राज्यों में स्थित कंपनियों के संचालक यह नहीं चाहते कि इस क्षेत्र में उनका आधिपत्य यूं कहें एकाधिकार खत्म हो जाये। इस बात को ध्यान में रख इनके द्वारा इस क्षेत्र में बिहार में अपना उद्योग स्थापित करने को आगे आये बिहारी उद्यमियों के खिलाफ आंदोलन शुरु करा दिया गया है।
बालमुकुंद सीमेंट ने बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर फरवरी 2010 में मुजफ्फरपुर जिले के मड़वन में अपनी सफेद एस्बेस्टस की परियोजना पर काम शुरू किया। इसके लिए कंपनी ने अपने स्तर से जमीन का क्रय भी किया। आरंभ के सात-आठ महीने तक कंपनी का कोई विरोध नहीं हुआ पर बाद में असमाजिक तत्वों ने एक छात्र संगठन की आड़ में पर्यावरण की बात कहते हुए आंदोलन शुरू कर दिया। यही नहीं रंगदारी मांगे जाने लगी और फिर फैक्ट्री परिसर में घुसकर मारपीट और लूटपाट की घटना को भी अंजाम दिया गया। स्थानीय थाने में इसकी प्राथमिकी भी दर्ज है। अब नया पेंच यह है कि पर्यावरण के नाम पर फिर से भ्रमित करने वाले आंदोलन की तैयारी चल रही है।
इस बाबत बालमुकुंद का कहना है कि सफेद एस्बेस्ट्स फैक्ट्री शुरू करने की अनुमति वन एवं पर्यावरण मंत्रालय देता है। चीन के बाद भारत में सबसे अधिक 50 एस्बेस्ट्स की फैक्ट्री है। भारत में इसका कारोबार 4500 करोड़ रुपये का है। यह बिल्कुल ही सुरक्षित है। बिहार में इस तरह की तीन फैक्ट्रियों को शुरू किए जाने को ले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने क्लियरेंस दिया हुआ है। आंदोलन कर रहे माफिया तत्व का जुड़ाव पश्चिम बंगाल से है। बालमुकुंद की मड़वन में खुल रही फैक्ट्री का विरोध इसलिए हो रहा है कि इनकी कोई भी इकाई पश्चिम बंगाल में नहीं है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत के ग्यारह वैज्ञानिकों, प्रोफेसरों व डाक्टरों की कमेटी बनाकर प्रोजेक्ट क्लियरेंस देता है। 140 यूएनओ देशों में इस पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है।
बालमुकुंद की योजना मार्च 2011 तक उत्पादन आरंभ करने की है। ऐसे में कंपनी की योजना कहां तक आगे बढ़ेगी यह आने वाला समय ही बता पायेगा।