मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

हिन्दू होने पर गर्व क्यों ?

सन् 1857 की क्रांति में पराधीनता से मुक्त होने के असफल प्रयास से समाज के मन में ग्लानी का भाव आया। प्रबुद्ध वर्ग में हिन्दुत्व के बारे में हीनता का बोध उत्पन्न हुआ। मुझे गधा कह लो, हिन्दू मत कहो। इस तरह के नकारात्मक भाव की उत्पत्ति हुई थी। इस विषम परिस्थति में स्वामीं विवेकानन्द ने गौरव के भाव को जागृत किया तथा हिन्दू समाज में नये जोश और उत्साह का संचार किया। अपने विस्मृत स्वाभिमान को झकझोरने का कार्य किया। राष्ट्र धर्म एवं संस्कृति की पताका सन् 1893 में शिकागों में सर्वधर्मसम्मेलन में फहराई गई। समूची दुनिया का ध्यान भारतीय संस्कृति की ओर खींचने में सफल हुए। स्वामीजी का कथन है कि ‘‘जब कोई अपने पूर्वजों पर ग्लानी महसूस करें तो समझना चाहिए उसका अंत आ गया है।‘‘ स्वामीजी ने राष्ट्र.धर्म.संस्कृति के प्रति गौरवपूर्ण भाव का जागरण कर हिन्दुत्व को गौरवान्वित किया। इसी बीच सन् 1925 को परम पूजनीय डॉ. साहब के नेतृत्व मार्गदर्शन में ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ‘‘ की स्थापना भी इसी कड़ी में एक चरण था। सन् 2002 में राष्ट्र जागरण का ध्येय वाक्य था, ‘‘गर्व से कहों हम हिन्दू है।‘‘ भारत दुनिया का सबसे प्राचीनतम देश हैं। भारतीय हिन्दू संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम और अद्भुत विज्ञान सम्मत संस्कृति है। अपने लिए गौरव का विषय है कि शाश्वत ज्ञान के रूप में हमारे पास वेद है। वेदों में सृष्टि रचना से लेकर अन्यान्य विषयों का लौकिक और पारलौकिक ज्ञान का भंडार भरा हुआ है। इन वेदों के माध्यम से हम अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय विरासत का बोध सहज ही प्राप्त कर सकते हैं। दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद हमारे पास है। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति विश्व का प्राण है। हिन्दू धर्म के बाद अन्य धर्म प्रकाश में आये। ध्यान से देखने समझने पर ज्ञात होता है कि मूल अवधारना वेदो से ही प्राप्त करके अन्य धर्मग्रन्थों का निर्माण हुआ। अन्य धर्म ग्रन्थो का उद्गम स्थल वेद ही है। यह प्रतीत होता है कि शाश्वत.सनातन ज्ञान के रूप में परमात्मा ने हमें ज्ञान स्वरूप वेद प्रदान किये है। अपने ही पूर्वजों द्वारा सत्य की खोज एवं उसका प्रचार.प्रसार सारी दुनिया में किया है। सारी दुनिया को कपड़े पहनना और मानवीय मूल्यों का ज्ञान हिन्दुस्तान ने ही सिखाया है। सम्पूर्ण विश्व को अपना मानने का भाव ‘‘कृणवन्तो विश्वमार्यम्‘‘ हमारी संस्कृति ने प्रदान किया है। विश्व पटल पर जो भी दिखाई देता है वह सब कुछ वेदों की कृपा से ही प्राप्त किया हुआ है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं किया जाना चाहिए। सम्पूर्ण विश्व को चरित्र की शिक्षा सीखने का आव्हान हमने किया है।

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‘‘एतद्देश्य प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं.स्वं चरित्रं शिक्षेस् पृथिव्यां सर्व मानवाः‘‘
समुचा वसुंधरा परिवार हमारा है। यह उदात्त भाव हमारे हिन्दू समाज ने विश्व को दिया है। हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सूत्रों से गूँथा हुआ है। एक.एक सूत्र अद्भुत् विलक्षणता लिए हुए है। इनका साक्षात्कार व्यक्ति को लघु से महान् और महान से महानतम बनने की प्रेरणा प्रदान करता है। सच्चे अर्थो में मानव जाति की कर्तव्य संहिता है, हिन्दू धर्म। समूची दुनिया की भौगोलिक और सांस्कृतिक रचना को देखने पर ज्ञात होता है कि आज भी विश्व में सर्वत्र हिन्दुत्व के अवशेष फैले हुए है, तथा हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा भाव है।

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आपको विदित है डॉ. वाकणकर का अमेरिका में रेड इंडियनों के साथ यज्ञ करने का प्रसंग? डॉ. रघुवीर का साइबेरिया का यात्रा प्रसंग? गंगाजल मांगने का उदाहरण? सिकंदर के गुरू का भारत से गीता, गंगाजल और एक गुरु लाने के लिए कहना? विश्व में अपने प्रभाव का प्रमाण है।

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हमारे धर्म ने समूची मानवजाति के लिए चार पुरुषार्थों क्रमशः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का विवरण प्रस्तुत किया है। धर्म और मोक्ष के बीच विवेकपूर्वक अर्जन तथा उपभोग करने की दृष्टि प्रदान की है। संसार मंे जो कुछ भी है, वह परमात्मा का है। उसका त्यागपूर्वक उपभोग करने की शिक्षा हमारे धर्म ने ही दी है।
‘‘ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्।‘
तेन त्यक्तेन् भुंजीया मा गृधः कस्य स्विद्धनम्।।‘‘
विश्व के चार प्रतिशत अमेरिका वासी, चालीस प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करते है। इसी साम्राज्यवाद के कारण विश्व में चारों ओर अशांति दिखाई पड़ रही है। इस घोर अशांति के जनक भोगवादी संस्कृति के उपासक ही है।

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हमने विश्व को चार आश्रम क्रमशः ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास के रूप में अत्यंत मंगलकारी व्यवस्था का बोध कराया है। इन आश्रमों के अनुरूप जीवन यापन करने से समाज एवं राष्ट्र की सर्वाेपरी सेवा की जा सकती है। समाज रचना का यह सुन्दर स्वरूप अन्य धर्माे में दृष्टिगोचर नहीं होता चूँकि इनकी विस्तृत व्याख्या करना यहाँ पर प्रासंगिक नहीं है। समाज और राष्ट्र को सुव्यवस्थित संचालित करने के लिए गुण, कर्मोे के अनुरूप चार वर्णो में विभाजित किया गया है। वर्णव्यवस्था और समाज रचना अपनी विशेषता है। ‘‘चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं, गुणकर्म विभागशः।‘‘ हम समाज जीवन की सभी विधाओ में श्रेष्ठ थे। यथा विज्ञान, विमान शास्त्र, नौका यान, रसायन शास्त्र, और गणित जैसे सभी विषयों में और व्यापार और वाणिज्य में भी दुनिया में फैले हुए है। झारखण्ड की जनजातियों द्वारा लौह निर्माण की कला को जानना, हमारे लिए अत्यन्त गौरव का विषय है।

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सन् 2011 से युग परिवर्तन की घोषणा परम् पूज्यनीय सरसंघचालक एवं पं. आचार्य श्रीराम शर्मा के द्वारा की गई है। वहीं डॉ. कलाम के अनुसार सन् 2020 में भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा। हम पुनः शक्तिशाली बने तथा विश्व का मार्गदर्शन करें।

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