शुक्रवार, 4 मई 2018

सम्पादन व सम्पादकीय विभाग

सम्पादन व सम्पादकीय विभाग पत्रकारिता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका अथवा अन्य जनसंचार माध्यम का स्तर उसके सम्पादन व सम्पादकीय विभाग पर निर्भर करता है। सम्पादकीय विभाग जितना सक्रिय, योग्य व व्यावहारिक होगा, वह मीडिया उतना ही अधिक प्रचलित व ख्याति प्राप्त होगा। इसलिए पत्रकारिता को समझने के लिए इस कार्य व विभाग की जानकारी होना अति आवश्यक है।
किसी भी समाचार-पत्र या पत्रिका की प्रतिष्ठा, उसका नाम, उसकी छवि उसके संपादक के नाम के साथ बनती-बिगड़ती है। सम्पादक किसी अच्छी फिल्म को बनाने वाले उस निर्देशक की तरह होता है, जिसे हर बार एक अच्छा अखबार या पत्रिका बनानी होती है। इस काम में उसकी प्रतिभा और उसकी कबिलियत तो महत्व रखती ही है, उसकी टीम और उसके सहयोगियों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। इस सम्पादकीय टीम के साथ-साथ जो एक अन्य महत्वपूर्ण चीज होती है। वह है पत्र या पत्रिका का सम्पादकीय पृष्ठ। पत्रिकाओं में जहां सम्पादकीय पृष्ठ प्रारम्भ में होता है वहीं अखबारों में इसकी जगह बीच के पृष्ठों में कहीं होती है।
कुल मिला कर संपादक, सम्पादकीय विभाग और सम्पादकीय पृष्ठ किसी भी पत्र-पत्रिका की सफलता और श्रेष्ठता के सूत्रधार होते हैं। समाचार पत्र-पत्रिकाओं के कार्यालयों में समाचार विभिन्न श्रोतों, जैसे संवाददाताओं तथा एजेंसियों से प्राप्त होते हैं। कई बार विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों, विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों इत्यादि की ओर से भी प्रेस रिलीज दी जाती हैं। इन सबको समाचार कक्ष में ‘डेस्क’ पर एकत्र किया जाता है। सारी सामग्री अलग-अलग तरह की होती है। उप-सम्पादक इन सब प्राप्त समाचार-सामग्री की छंटनी, वर्गीकरण, आवश्यक सुधार करते हैं, साथ ही काटते-छांटते या विस्तृत करते हैं और उन्हें प्रकाशन योग्य बनाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया ‘सम्पादन’ के अन्तर्गत आती है।
सम्पादकीय विभाग ‘समाचार पत्र का हृदय’ कहा जा सकता है। कुशल सम्पादन पत्र को जीवन्त और प्राणवान बना देता है। सम्पादकीय विभाग मुख्यतः समाचार, लेख, फीचर, कार्टून, स्तम्भ, सम्पादकीय एवं सम्पादकीय टिप्पणियों आदि सारे कार्यों से जुड़ा होता है। यह विभाग सम्पादक या प्रधान सम्पादक के नेतृत्व में कार्य करता है। इनकी सहायता के लिए कार्य करने वाले अनेक व्यक्ति होते हैं, जो सहायक सम्पादक, संयुक्त सम्पादक, समाचार सम्पादक, विशेष सम्पादक व उप सम्पादक इत्यादि होते हैं, जो समाचार संकलन से लेकर सम्पादन की विविध प्रक्रियाओं से विभिन्न स्तरों पर सम्बद्ध होते हैं।
किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका में सम्पादन का कार्य एक चूनौतीपूर्ण कार्य है, जिसे पत्र-पत्रिका का सम्पादन मण्डल पूर्ण करता है। इस सम्पादन मण्डल का मुखिया सम्पादक कहलाता है। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित सभी सामग्री की उपयोगिता व महत्व के लिए सम्पादक ही जिम्मेदार होता है। सम्पादक मण्डल द्वारा पत्र में एक पृष्ठ पर नवीन व समसामयिक विचार, टिप्पणी, लेख एवं समीक्षाएं लिखी जाती हैं, जो राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक अथवा अन्य समसामयिक विषयों पर आधारित हो सकती है। इन टिप्पणियों को सम्पादकीय कहते हैं, और जिस पृष्ठ पर पर यह लिखी जाती हैं, उसे सम्पादकीय पृष्ठ कहते हैं। किसी भी समाचार पत्र का यह सबसे महत्वपूर्ण पृष्ठ होता है।
हालांकि वर्तमान दौर में समाचार पत्रों में सम्पादक की भूमिका एक रचनाकार पत्रकार से बदलकर प्रबन्धक पत्रकार जैसी हो गयी है मगर इसके बाद भी सम्पादक का महत्व खत्म नहीं हुआ है और आज भी किसी भी पत्रकार के लिए संपादक बनना एक सपने की तरह ही है।सम्पादन एवं सम्पादकीय किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका के लिए महत्वपूर्ण शब्द हैं। सम्पादन का तात्पर्य किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका के लिए समाचारों व लेखों का चयन, उनको क्रमबद्ध करना, सामग्री का प्रस्तुतीकरण निश्चित करना, संशोधित करना, उनकी भाषा, व्याकरण और शैली में सुधार एवं विश्लेषण करना और उन्हें पाठकों के लिए पठनीय बनाना है।
सम्पादन कार्य को सम्पादित करने हेतु सम्पादक के नेतृत्व में कार्य करने वाली टीम को सम्पादकीय मण्डल या सम्पादकीय विभाग कहा जाता है। सम्पादकीय विभाग के प्रत्येक सदस्य का कार्य महत्वपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण होता है।
सम्पादकीय विभाग में एक स्टिंगर से लेकर पत्र के सम्पादक तक के अपने-अपने उत्तरदायित्व व योग्यतायें होती हैं। जिनका निर्वाह करते हुये वे एक समाचार पत्र-पत्रिका को पाठकों के बीच लोकप्रिय व पठनीय बनाकर प्रस्तुत करते हैं।सम्पादन का अर्थ



‘सम्पादन’ का शाब्दिक अर्थ कार्य सम्पन्न करना है। किसी भी कार्य को वह अंतिम रूप देना, जिस रूप में उसे प्रस्तुत करना हो, यह ही सम्पादन कहलाता है। किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका में समाचार श्रोतों से समाचार एकत्रित कर उसे पाठकों के लिए पठनीय बनाना ही सम्पादन है।
किसी पुस्तक का विषय या सामयिक पत्र के लेख आदि अच्छी तरह देखकर, उनकी त्रुटियां आदि दूर करके और उनका ठीक क्रम लगा कर उन्हें प्रकाशन के योग्य बनाना भी संपादन है। वास्तव में सम्पादन एक कला है, जिसमें समाचारों, लेखों व किसी समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित की जाने वाली सभी तरह की सामग्री का चयन, उसको क्रमबद्ध करना, सामग्री का प्रस्तुतीकरण निश्चित करना, उसे संशोधित करना, उसकी भाषा, व्याकरण और शैली में सुधार करना, विश्लेषण करना आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। पृष्ठों की साज-सज्जा करना, शुद्ध और आकर्षक मुद्रण कराने में सहयोग करना भी ‘सम्पादन’ का अंग है।
पत्रकारिता सन्दर्भ कोश में ‘सम्पादन’ का अर्थ इस प्रकार बताया गया हैः ‘‘अभीष्ट मुद्रणीय सामग्री (समाचारों, लेखों एवं अन्य विविध रचनाओं आदि) का चयन, क्रम-निर्धारण, मुद्रणानुरूप संशोधन-परिमार्जन, साज-सज्जा तथा उसे प्रकाशन-योग्य बनाने के लिए अन्य अपेक्षित प्रक्रियाओं को सम्पन्न करना। आवश्यकता पड़ने पर मुद्रणीय सामग्री से सम्बन्धित प्रस्तावना, पृष्ठभूमि सम्बन्धी वक्तव्य अथवा अभीष्ट टिप्पणी आदि प्रस्तुत करना भी सम्पादन के अन्तर्गत आता है।’’
जे.एडवर्ड मरे के अनुसार – “Because copy editing is an art, the most important ingredient after training and talent, is strong motivation. The copy editor must care. Not only should he know his job, he must love it. Every edition, every day. No art yields to less than maximum effort. The copy editor must be motivated by a fierce professional pride in the high quality of editing.’’‘सम्पादन’ आसान काम नहीं है। यह अत्यन्त परिश्रम-साध्य एवं बौद्धिक कार्य है। इसमें मेधा, निपुणता और अभिप्रेरणा की आवश्यकता होती है। इसलिए सम्पादन कार्य करने वाले व्यक्ति को न केवल सावधानी रखनी होती है, बल्कि अपनी क्षमताओं, अभिरूचि तथा निपुणता का पूरा-पूरा उपयोग भी करना होता है। उसे अपने कार्य का पूरा ज्ञान ही नहीं होना चाहिए, बल्कि उसमें कार्य के प्रति एकनिष्ठ लगाव भी होना चाहिए।
समाचार-पत्र कार्यालय में विभिन्न श्रोतों से समाचार प्राप्त होते हैं। संवाददाता (रिपोर्टर), एजेंसियां व कई बार विभिन्न संस्थाओं, राजनीतिक दलों इत्यादि की ओर से प्रेस रिलीज प्रेषित किए जाते हैं। इन सबको समाचार-कक्ष में ‘डेस्क’ पर एकत्र किया जाता है। सारी सामग्री अलग-अलग तरह की होती है। उप-सम्पादक इन सब प्राप्त समाचार-सामग्री की छंटनी व वर्गीकरण करते हैं, तथा उनमें यथावश्यक उनमें सुधार करते हैं, काटते-छांटते या विस्तृत करते हैं और उन्हें प्रकाशन योग्य बनाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया ‘सम्पादन’ के अन्तर्गत आती है।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत अनेक श्रोतों से प्राप्त समाचारों को संघनित कर मिलाना, एक आदर्श समाचार-कथा (न्यूज स्टोरी) तैयार करना, आवश्यकता पड़ने पर उसका पुनर्लेखन करना इत्यादि बातें सम्मिलित हैं। सम्पादक केवल काट-छांट तक ही सीमित नहीं हैं, उसमें अनुवाद करना, समाचारों को एक तरह से अपने रंग में रंगना भी शामिल है। वैचारिक दृष्टि से, विशेष रूप से कई बार समाचार-पत्र की रीति-नीति के अनुसार सम्पादक के जरिए उनमें वैचारिक चमक भी पैदा की जाती है।
अतः सम्पादन पत्रकारिता में वह कला है जो समाचार को पाठकों के लिए रूचिकर, मनोरंजक, तथ्यपूर्ण व ज्ञानवर्धक बनाकर परोसती है।

संदर्भ 
https://www.navinsamachar.com/communication-news-writing/#.Wuy05qSFPIU

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