शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सही मायने में रोजगार देता डेयरी उद्योग


लेखक- शिवेन्दु राय 
कोई भी उद्योग और उससे जुड़ा रोजगार तब सही माना जाना चाहिए, जब उससे जुड़े कर्मचारी या पेशेवर को अपने मूल या जड़ से अलगाव न होने दे| अगर यहीं रोजगार गृह क्षेत्र या घर में रह कर किया जा सके तो इस अलगाव वाली स्थिति से बचा जा सकता है| देश में लगभग सभी राज्यों को रोजगार की दृष्टि से पूर्ण नहीं कहा जा सकता है क्यूंकि कोई भी राज्य 100 प्रतिशत रोजगार देने में सक्षम नहीं है| इसके कई कारण है जिसमें शिक्षा का आभाव, उद्योग धंधों का आभाव, तकनिकी दक्ष लोगों की कमी और अत्यधिक बेरोजगारी प्रमुखता से है| बिहार में रोजगार दिलाने में कारगर होने वाले सभी मूलभूत आवशयकताओं का आभाव है| जिससे यहाँ के लोग पलायन कर दूसरे राज्यों में जाने पर विवस है| वर्तमान में डेयरी उद्योग ने बिहार के बेरोजगारों को बृहद पैमाने पर जड़ से जुड़े रह कर रोजगार देने का काम कर रहा है| सिमित संसाधनों और तकनिकी दक्षता के आभाव के बावजूद जिन उद्योगों से रोजगार मिले, वहीँ सही मायने में रोजगार देने वाला उद्योग कहा जा सकता है| आबादी के बड़े हिस्से को यह जानकारी नहीं होगी कि वर्ष 2020 तक डेरी उद्योग का कारोबार दस लाख करोड़ रुपए से कहीं आगे निकल चुका होगा। जबकि मात्र चंद वर्षों पूर्व यानी वर्ष 2005 में यह कारोबार लगभग सवा दो लाख करोड़ रुपए के बराबर हुआ करता था। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों लोगों को आजीविका का जरिया मिला हुआ है।
इस कड़ी में बिहार राज्य दूध को-ओपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड का नाम पहले सहकारी उद्योग के रूप में लिया जा सकता है| इसकी स्थापना 1983 डेयरी विकास के कार्यक्रम एजेंसी ‘आनंद’ के माध्यम से हुआ था, जो बाद में बिहार राज्य डेयरी निगम(COMFED) को सौंप दिया गया| वर्तमान में यह दस जोन में अपना विस्तार कर बिहार और झारखण्ड के लगभग 60 जिलों के पशुपालकों को अपने दूध बेचने और खरीदने का केंद्र प्रदान किया है और साथ ही बेरोजगारों को रोजगार देने का काम किया है|  सुधा के उत्पाद अब बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं उत्तर पूर्वी राज्यों के 160 शहरों में उपलब्ध हैं|
बिहार में आठ जोन में अभी यह कार्य कर रहा है, यह समिति सुधा के नाम से अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेच रही है| 

बिहार के आठ जोन में वैशाली पाटलिपुत्र दूध संघ (VPMU) के नाम से पटना, वैशाली, नालंदा, सारण और शेखपुरा जिले में कार्य कर रहा है| इस जोन में पटना जिले में 1395 गाँव है, वैशाली में 1422, और शेखपुरा में 310 गाँव है, जिसमें हर 3 गाँव पर एक दूध क्रय-विक्रय केंद्र समिति ने खोल रखा है जिसमें प्रत्यक्ष रूप से हर केंद्र पर 1 व्यक्ति को रोजगार प्राप्त है| इसके हिसाब से इन 3 जिलों में एक हजार लोगों को रोजगार प्राप्त है|
डॉ. दूध संघ(DRMU) बरौनी जोन में बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय और पटना के कुछ हिस्से को शामिल किया गया है| बेगूसराय जिले में 1229 गाँव, खगड़िया में 306 गाँव और लखीसराय में 479 गाँव है, जिसमें इस उद्योग से केवल केंद्र पर ही लगभग सात सौ बेरोजगारों को रोजगार मिला है|
तिरहुत दूध संघ (TIMUL), मुजफ्फरपुर जोन में मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, सिवान और गोपालगंज जिला शामिल है| मुजफ्फरपुर जिले में 1811 गाँव, सीतामढ़ी में 845 गाँव, शिवहर में 207 गाँव, पूर्वी चंपारण में 1344 गाँव, पश्चिम चंपारण में 1483 गाँव, सिवान में 1528 गाँव और गोपालगंज में 1566 गाँव हैं| इस हिसाब से देखा जाये तो लगभग तीन हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है| सिवान जिले के ग्राम जमुआँव केंद्र के संचालक सोनू जी राय बताते हैं कि पशुपालकों में उम्मीद की किरण दिखायी देने लगी है वो अब कई उन्नत किस्म के दुधारू पशुओं को पालने लगे हैं| दूध का उचित मूल्य मिलने लगा है तथा साथ ही साथ सुधा द्वारा मवेशियों के लिए समय-समय पर कैम्प लगा कर पशुपालकों को मार्गदर्शन दिया जाने लगा है, जिससे वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन होने लगा है|  
मिथिला मिल्क यूनियन (MMU), समस्तीपुर जोन में समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी जिला शामिल है, जिसमें समस्तीपुर में 1260 गाँव, दरभंगा में 1277गाँव और मधुबनी में 1115 गाँव हैं| जिसमें से इस दुग्ध उद्योग में गाँव के केन्द्रों के माध्यम से लगभग 12 सौ बेरोजगारों को रोजगार प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त है, जो पहले दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों में सीजनल रोजगार के लिए जाते थे| इस उद्योग ने इस क्षेत्र में किसानों को काफी हद तक आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है| समस्तीपुर क्षेत्र के मवेशी पालक संजय सिंह कहते हैं कि पहले दूध का उचित मूल्य नहीं मिलता था और पशुओं को पालना और दूध बेचना अच्छा नहीं माना जाता था| आज सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा है| मिथिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि., समस्तीपुर ( मिथिला दुग्ध संघ समस्तीपुर डेयरी ) प्रबंध निदेशक डीके श्रीवास्तव ने बताया मिथिलांचल में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने और खासकर सुदूर गावों में निचले स्तर के किसानों को इससे अधिक से अधिक जोड़ने के लिए मिथिला दुग्ध संघ लगातार काम कर रहा है। हमारे संस्थान की पूरी कोशिश रहती है की हर किसान की आर्थिक उन्नति में हम अधिक से अधिक सहयोग करते रहे . हमें पूर्ण उम्मीद है की डेयरी अवसंरचना योजनाकिसानो की आर्थिक प्रगति के साथ साथ सामाजिक स्तर में भी अमूल परिवर्तन लाएगी|
शाहाबाद दूध संघ (SMU), आरा जोन में भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास जिला शामिल है, जिसमें भोजपुर में 1209 गाँव, बक्सर जिले में 1142 गाँव, कैमूर जिले में 1700 गाँव और रोहतास जिले में 2072 गाँव है| जिसमें इस उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से गाँव के केन्द्रों में दो हजार व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त है| यह क्षेत्र चावल का क्षेत्र कहलाता है, इस क्षेत्र में मवेशी पालना सबसे आसान है, लेकिन अभी तक इस उद्योग आर्थिक दृष्टि से ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था| सुधा ने इस क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया है अब पशुपालक कई मवेशियों को पालने लगे है, जिससे उनके आय में इजाफा देखने को मिल रहा है| इस क्षेत्र के दुग्ध केंद्र के संचालक विनय तिवारी कहते है कि अभी बहुत संभावना है अगर सरकारी सहायता मिले तो पुरे बिहार को यही क्षेत्र दूध दे सकता है और इस क्षेत्र के लोगों को कहीं रोजगार तलाशने की जरुरत नहीं पड़ेगी| 
विक्रमशिला दूध संघ (VIMUL), भागलपुर जोन में भागलपुर, मुंगेर, बांका, जमुई और खगरिया जिले का हिस्सा शामिल है, जिसमें भागलपुर जिले में 1515 गाँव, मुंगेर जिले में 923 गाँव, बांका जिले में 2000 गाँव और खगड़िया जिले के 306 गाँव है| जिसमें इस दुग्ध उद्योग में गाँव के केन्द्रों में लगभग 16 सौ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप में रोजगार प्राप्त हुआ है| सुधा केंद्र संचालक मदन यादव बताते है कि पहले वह दिल्ली में नौकरी करते हैं लेकिन सही मायने में न तो आर्थिक और न ही मानसिक रूप में अपने काम से संतुष्ट थे, लेकिन अब गाँव में अपने सभी कामों के साथ इस केंद्र का सफल संचालन कर रहे हैं और आर्थिक रूप से भी संबल होते जा रहे हैं|
मगध डेयरी परियोजना (MDP), गया जोन में गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल और नवादा जिला शामिल है, जिसमें गया जिले में 2886 गाँव,  औरंगाबाद जिले में 1884 गाँव, जहानाबाद जिले में 93 पंचायत, अरवल जिले में 335 गाँव और नवादा जिले में 1099 गाँव है| जिसमें लगभग 24 सौ लोगों को केवल दूध केन्द्रों पर रोजगार प्राप्त है| इस क्षेत्र में यादव समुदाय की बहुलता के कारण भी दूध उत्पादन का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है| इस क्षेत्र में सुधा से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दस हजार लोग मगध डेयरी परियोजना के साथ काम कर रहे हैं| इस उद्योग के अलावा कोई भी इतनी बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन करने वाला लघु उद्योग इस क्षेत्र में काम नहीं कर रहा है|
कोसी डेयरी प्रोजेक्ट (KDP), पूर्णिया जोन में पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जिला शामिल है| जिसमें पूर्णिया जिले में 1226 गाँव, कटिहार जिले में 1547 गाँव, अररिया जिले में 751 गाँव, किशनगंज जिले में 802 गाँव, सहरसा जिले में 468 गाँव, सुपौल जिले में 556 गाँव और मधेपुरा जिले में 449 गाँव हैं| जिसमें प्रत्यक्ष रूप से केन्द्रों के माध्यम से लगभग दो हजार लोगों को रोजगार प्राप्त है| यह क्षेत्र हमेसा से दूध उत्पादन में समृद्ध रहा है, क्यूंकि इस क्षेत्र का मौसम और भोगौलिक संरचना पशुओं के अनुकूल है| इस क्षेत्र में पशुपालक किसानों की अधिकता भी है| इस क्षेत्र के दूध से बने उत्पाद देश भर में प्रसिद्ध हैं|
गाँव के सभी केन्द्रों के सफल संचालय के लिए आज कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा गया है, जिसको चलने और मोनिटरिंग के लिए सुधा ने लगभग 100 इंजीनियर को रखा है| हर जिले में केन्द्रों से दूध लाने के लिए किराये पर वाहन रखा गया है, जिसमें हर जिले में लगभग 100 वाहन चालक को रोजगार मिला है, जिसके हिसाब से देखा जाये तो इन दो पदों से 60 जिलों से लगभग 12 हजार लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है| इसके अलावा प्लांट में 8 हजार लोग कार्यरत है जो सुधा के कर्मचारी है| लेकिन बाकि और पद स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले हैं| हर केंद को सोलर लाइट से जोड़ा गया है जिससे केंद्र संचालक को कोई असुविधा न हो सके| किसानों और पशुपालकों की दृष्टि से देखे तो इस उद्योग के आने से दूध का उचित मूल्य मिलने लगा है| केंद्र संचालक सोनू जी राय बताते हैं कि दूध किसान से आता है। दूध की जांच के आधार पर इसकी कीमत तय की जाती है| 28 से 60 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक्री होती है|

सिवान जिले के ग्राम जमुआँव के पशुपालक मनोज राय के अनुसार, कृषि प्रधान देश होने के बावजूद युवाओं की करियर प्राथमिकता सूची में कृषि या इससे संबद्ध विभिन्न क्षेत्रों का कोई स्थान प्रायः नहीं देखने को मिलता है। निस्संदेह इसे विडंबना के अतिरिक्त कुछ और नहीं कहा जा सकता है। बिहार में अब डेरी उद्योग से आशय अब महज दुधारू पशुओं का पालन अथवा इनके दूध की बिक्री तक सीमित नहीं रह गया है। दूध से तैयार प्रसंस्कृत उत्पादों की लंबी श्रृंखला की इसमें भूमिका तेजी से निरंतर बढ़ रही है। इन उत्पादों में खोया, मक्खन, पनीर, दही, आइसक्रीम चॉकलेट्स, बेबी फूड, स्किम्ड मिल्क, लस्सी, घी, छैना तथा अन्य प्रकार के डिब्बाबंद प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उत्पादन किया जा रहा है। 

पेशे से शिक्षक और पशुपालक मधुकर प्रसाद का कहना है कि आजकल डेरी फार्म का कारोबार शुरू कर के कोई बेरोजगार या किसान खासी कमाई कर रहा है| पारंपरिक खेती से ऊब चुके या घाटा उठा चुके किसानों के लिए डेरी फार्म सौगात की तरह है| सब से खास बात यह है कि सरकार और कई संस्थाएं इस कारोबार को चालू करने के लिए कई तरह की सुविधाएं मुहैया करा रही हैं, जिस का फायदा उठा कर खुद की माली हालत को सुधारा जा सकता है और कुछ जरूरतमंदों को रोजगार भी दिया जा सकता है| उनका कहना है कि वो अब अपने परिवार में दूध का भरपूर सेवन करते हैं उसके बाद जो बचता है उसको केंद्र पर बेच आते हैं जिससे आय भी होने लगा है| लगभग सभी पशुपालन करने वालों की स्थिति बेहतर हुयी है|

आज बिहार में डेयरी उद्योग स्‍थापित करने पर युवाओं को राज्‍य सरकार 15 से 30 फीसद प्रति माह की सब्सिडी दे रही है। स्वरोजगार के तौर पर डेयरी फार्मिंग का व्यापार स्थापित करने के लिए गांव स्तर पर दूध उत्पाद बनाने, दुधारू पशुओं की खरीददूध दुहने की मशीनों और बछड़ों के पालन के लिए यह सब्सिडी दी जा रही है।
बिहार के पशुपालन, डेयरी विकास एवं मछली पालन मंत्री पशुपति के पारस ने बताया कि राज्य में डेयरी फार्मिंग को लाभप्रद धंधा बनाने के लिए व्यापक स्तर पर नीति बनाई जा रही है। इसके तहत राज्य के हर जिले में बेरोजगार नौजवानों को डेयरी फार्मिंग द्वारा स्वरोजगार दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार की तरफ से डेयरी फार्मिंग के साथ जुड़े किसानों और युवाओं के लिए दूध की लागत अनुसार कीमत और दूध के उपभोग के लिए दूसरे राज्यों में मार्केटिंग स्थापित करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। युवाओं को डेयरी के लाभप्रद धंधों के साथ जोड़ने के लिए युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
भविष्य में इस उद्योग के माध्यम से बिहार में सबसे अधिक रोजगार सृजन करने का प्रयास किया जा रहा है जिसमें 42.52 करेाड़ रुपये का समस्तीपुर दूध संयंत्र और 35 करोड़ रुपये का हाजीपुर संयंत्र शामिल है| इनके अलावा सुपौल में 26.75 करोड़ रुपये की लागत से तैयार डेयरी संयंत्र, क्रमश: 13.40 करोड़ रुपये और 17 करोड़ रुपये की लागत बिहारशरीफ एवं पटना आईसक्रीम संयंत्र, 10 करोड़ रुपये के निवेश से बना पटना पशु आहार कारखाना शामिल हैं| जो रोजगार की दृष्टि से वरदान साबित हो सकता है|




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