शुक्रवार, 4 मई 2018

टेलीविज़न इंट्रो लेखन


किसी साधारण टीवी रिपोर्ट में इंट्रो यानी वो हिस्सा जो प्रेज़ेंटर पढ़ेगा, उसे छोटा और दिलचस्प होना चाहिए. इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य भी आने चाहिए और साथ ही इसे कौतूहल पैदा करनेवाला भी होना चाहिए. ये ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि इंट्रो और रिपोर्ट की पंक्तियों में दुहराव न हो.
टॉप लाइन
काम पर आने के बाद कोई रिपोर्ट करने के लिए कहे जाने पर सबसे पहला काम जो आप करते हैं वो उस बारे में जितना संभव हो उतनी जानकारी जुटाना. इसका मतलब हुआ विभिन्न समाचार एचेंसियों, जैसे रॉयटर्स, एसोसिएटेड प्रेस आदि, पर आई ख़बरों को पढ़ना और जो भी महत्वपूर्ण है उसे मार्क करना और इसके बाद उस रिपोर्ट की टॉप लाइन निकालना. ये उस रिपोर्ट का वो अंश है जो सबसे महत्वपूर्ण है और जिसे आप अपने श्रोताओं या दर्शकों को बताना चाहते हैं. जैसे ये एक साधारण, सीधी स्क्रिप्ट है –
‘लेखक सर जॉन मॉर्टिमर का आज निधन हो गया’
यानी अब हमें उनकी उम्र, मृत्यु का कारण और उनकी सबसे मशहूर कृति के बारे में जानना है. इसलिए क्यू में सारी बातें तथ्यात्मक होनी चाहिए – केवल ब्यौरा और केवल तथ्य.
कहानी सुनाना
आप अपनी रिपोर्ट में एक कहानी बता रहे हैं और उस कहानी को श्रोताओं तक पहुँचा रहे हैं. आप चाहते हैं कि वे आपकी बातों में दिलचस्पी लें, इसलिए आप सबसे अच्छी पंक्ति को अपनी कहानी के सबसे ऊपर रखेंगे ताकि श्रोता इससे आकर्षित हों. आप अपनी स्क्रिप्ट ऐसे शुरू नहीं करना चाहेंगे – सरकार का कहना है या आज जारी किए गए एक सर्वेक्षण का कहना है – क्योंकि ये बहुत दिलचस्प नहीं होगा. आप संभवतः अपनी रिपोर्ट किसी बयान से शुरू करना चाहेंगे जो कि आपकी रिपोर्ट का हिस्सा है. ये अक्सर रिपोर्ट शुरू करने का एक बहुत अच्छा तरीक़ा हो सकता है. आप ड्रॉप्ड क्यू का तरीक़ा भी अपना सकते हैं जिसमें आप शुरूआत में एक सवाल पूछते हैं और रिपोर्ट के बीच में कहीं उसका जवाब पाते हैं. आप रिपोर्ट में सारी बातें केवल रख भर न दें – उन्हें दिलचस्प बनाने की भी कोशिश करें. कोशिश करें कि लोग आपकी बातों को सचमुच सुनना चाहें जो आपको कहना है. जैसे शिक्षा संबंधी एक रिपोर्ट ऐसे भी शुरू हो सकती है कि - ‘केरल के वरिष्ठ मुख्य निरीक्षक की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार..., मगर इससे ये रिपोर्ट बहुत नीरस लगेगी. इसलिए रिपोर्टर ने इसे ऐसे लिखा – साक्षरता लाने में कमियों को उजागर करने वाली एक रिपोर्ट. और इसके बाद आप कह सकते हैं कि ये रिपोर्ट किसने जारी की है.
हेडलाइन और स्क्रिप्ट
इस बात का ध्यान रखें कि आपकी रिपोर्ट की हेडलाइन और पहली पंक्तियाँ एक साथ पढ़ी जानी हैं, इसलिए उनमें बहुत अधिक दोहराव नहीं होना चाहिए. जैसे, न्यूयॉर्क की हडसन नदी में एक विमान के उतरने की रिपोर्ट लिखने का उदाहरण लेते हैं. हेडलाइन ये है – ‘न्यूयॉर्क की हडसन नदी में विमान की आकस्मिक लैंडिंग करवाने वाले पायलट की सराहना.’ अब आप जब स्क्रिप्ट लिख रहे हैं तो आपको शुरूआती हिस्से में कुछ अलग लिखना होगा. इसलिए दुर्घटना में बचे एक व्यक्ति की प्रतिक्रिया से मदद लेते हैं – इंजन से ज़ोर की आवाज़ आई और सब प्रार्थना करने लगे – एक यात्री के अनुसार कुछ ऐसा माहौल था जब न्यूयॉर्क के ऊपर एक अमरीकी विमान के दोनों इंजन बंद हो गए.
अपनी स्क्रिप्ट पढ़ें
अपनी स्क्रिप्ट ख़त्म करने के बाद उसे बोलकर पढ़ें. उन शब्दों को पढ़ें जिन्हें प्रेज़ेंटर को पढ़ना है क्योंकि अक्सर जो लिखा होता है जब उसे पढ़ा जाए तो वो उतना अच्छा सुनाई नहीं देता इसलिए लिखते समय इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है, और लिखने के बाद इसे पढ़ना भी ज़रूरी है ताकि पता लग जाए कि आप कहीं लड़खड़ा तो नहीं रहे. यदि ऐसा हुआ तो हो सकता है कि प्रेज़ेंटर को भी बोलते समय परेशानी हो.
टीज़र
आप सब कुछ अपनी स्क्रिप्ट में ही न कह डालें. ऐसे में रिपोर्टर के लिए कुछ कहने के लिए रह ही नहीं जाएगा. स्क्रिप्ट को टीज़र जैसा होना चाहिए ताकि श्रोता और जानना चाहें, रिपोर्टर की बात भी सुनना चाहें. जब आप इसे लिख रहे हैं तो ये अवश्य देख लें कि रिपोर्ट क्या कहने जा रहा है. ये सुनिश्चित कर लें कि आप एक-दूसरे की बातों को काट तो नहीं रहे या दोहरा तो नहीं रहे.
तथ्यों की जाँच करें
तथ्यों की दोबारा जाँच करें, तिबारा जाँच करें. रिपोर्टर से पता लगाएँ, एजेंसी कॉपियों को देखें और सारे दिन इस पर नज़र रखें. घटनाएँ बहुत तेज़ी से बदल सकती हैं और आपको उनका पता रहना चाहिए ताकि आप जब प्रसारण के लिए जा रहे हैं तो आपको पता हो कि आप उस समय तक उपलब्ध सबसे ताज़ा सूचनाएँ प्रसारित कर रहे हैं.
क्यू और स्क्रिप्ट
प्रेज़ेंटर ऐसे क्यू या स्क्रिप्ट पढ़ना पसंद करते हैं जो सटीक और ज़ोरदार हों. उनमें बहुत टेढ़े मुहावरे न लिखें. न बहुत अधिक उद्धरण हों, हालाँकि एक-दो का इस्तेमाल अक्सर अच्छा भी लगता है. यदि संभव हो तो प्रेज़ेंटर की शैली को समझें और उस हिसाब से लिखने की कोशिश करें. और स्वाभाविक है कि आप प्रेज़ेंटर से इस बात की पुष्टि कर लें कि वो उस क्यू को पढ़कर ख़ुश हैं जो आपने लिखा है.
सामूहिक प्रयास और ज़िम्मेदारी
कोई कार्यक्रम एक सामूहिक प्रयास से तैयार होता है और ऐसे ही स्क्रिप्ट लिखना भी टीमवर्क का हिस्सा है. कई प्रेज़ेंटर ख़ुद लिखना पसंद करते हैं और चाहते हैं कि प्रोड्यूसर उन पर एक नज़र डाल लें. वैसे स्क्रिप्ट जो भी लिख रहा हो, इसकी अंतिम ज़िम्मेदारी प्रोड्यूसर की होती है. इसलिए आपको ये देखना चाहिए कि आपकी स्क्रिप्ट पर प्रेज़ेंटर और एडिटर ने नज़र डाल ली है. पर अंततः चूँकि ज़िम्मेदारी प्रोड्यूसर की है, इसलिए आपको लगातार ये देखना होगा कि जो स्क्रिप्ट लिखी जा रही है वो सही है.
संदर्भ 
http://www.bbc.co.uk/academy/hi/articles/art20140402120646656

स्तम्भ लेखन

  एक प्रकार का विचारत्मक लेखन है । कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान एवं लेखन शैली   के लिए जाने जाते हैं । ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर समाचरपत्र उन्हें अपने पत्र में नियमित स्तम्भ - लेखन की जिम्मेदारी प्रदान करते हैं । इस प्रकार किसी समाचार-पत्र  में किसी ऐसे लेखक द्वारा किया गया विशिष्ट एवम नियमित लेखन जो अपनी विशिष्ट शैली एवम वैचारिक रुझान के कारण समाज में ख्याति प्राप्त होस्तम्भ लेखन कहा जाता है । 
स्तम्भ लेखन विचारपरक लेखन का प्रमुख रूप है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान वाले होते हैं , ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें नियमित स्तम्भ लिखने का जिम्मा देता है। स्तम्भ का विषय चुनने और उसमें विचार व्यक्त करने की उसे पूरी स्वतंत्रता रहती है।

समाचार लेखन सिद्धांत


अवधारणा
उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।
ऐतिहासिक विकास
इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।
परिभाषा
किसी समाचार को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
लेखन प्रक्रिया
समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है – मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी – कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है। समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है।
मुखड़ा या इंट्रो या लीड
उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है – क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है।
आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक – दो ककार दिये जा सकते हैं।
बॉडी
समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।
निष्कर्ष या समापन
समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
 संदर्भ 
https://sites.google.com/site/kaushalmms/ulta-piramida-saili

समकालीन मीडिया परिदृश्य

समकालीन मीडिया परिदृश्य

समकालीन मीडिया परिदृश्य
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सुभाष धूलिया

अतंराष्ट्रीय मीडिया परिदृश्य को समझने के लिए विश्व राजनीति पर एक निगाह डालना जरूरी हो जाता है। पिछले दो दशकों में दुनिया में कुछ ऐसे परिवर्तन आए हैं जिससे विकास की दिशा और दशा दोनों बदल गए। लेकिन यह कह सकते हैं अब तक कोई ऐसी विश्व व्यवस्था नहीं आ पायी है जिसमें स्थायित्व निहित हो। पिछली सदी की अस्सी-नब्बे के दशक की कुछ घटनाओं ने राजनीतिक, आर्थिक और सूचना संचार की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं को एक तरह से फिर से पारिभाषित कर दिया जिससे विश्व राजनीति के चरित्र और स्वभाव में बड़े परिवर्तन आए। अस्सी के दशक में विकास के सोवियत समाजवादी मॉडल के चरमराने की प्रकिया शुरु हुई और 1991 में सोवियत संघ का अवसान हुआ। इस घटना को पश्चिमी उदार लोकतंत्र और मुक्त अर्थव्यवस्था के विजय के रूप में देखा गया। इसी दशक में सूचना क्रांति ने भी बेमिसाल ऊंचाइयां हासिल की और इसी के समांतर दुनिया भर में मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुख आर्थिक सुधारों की प्रकिया भी शुरु हुई। इस आर्थिक प्रकिया के पूरक के रूप में भूमंडलीकरण ने भी नई गति हासिल की।

इन घटनाओं के उपरांत विश्व में एक नई सूचना और संचार व्यवस्था का भी उदय हुआ। एक रूप से इस व्यवस्था ने विकासशील देशों की उन तमाम दलीलों को ठुकरा दिया जो उन्होंने विश्व में एक नई सूचना और संचार व्यवस्था कायम करने के लिए छठे और सातवें दशक में पेश की थीं और जिन्हें 1980 में यूनेस्को मे मैक्बाइट कमीशन की रिपोर्ट के रूप में एक संगठित अभिव्यक्ति प्रदान की। विकासशील देशों की मांग थी कि विश्व में सूचना और समाचारों के प्रवाह में असंतुलन है और फिर इन पर विकसित देशों की चंद मीडिया संगठनों का नियंत्रण है। इसकी वजह से विकसशील देशों के बारे में नकारात्मक सूचना और समाचार ही छाए रहते हैं जिससे विकासशील देशों की नकारात्मक छवि ही बनती है जबकि विकसित देशों को लेकर सबकुछ सकारात्मक है।
यूनेस्को ने इन तमाम मसलों को संबोधित करने के लिए मैक्बाइट कमीशन का गठन किया और इसने 1980 में 'मैनी वॉइसेज वन वर्ल्ड'( दुनिया एक, स्वर अनेक) शीर्षक से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें विश्व में सूचना और समाचारों के प्रवाह में असंतुलन को दूर करने के लिए अनेक सिफारिशें की गयी थीं। लेकिन अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देशों ने इन सिफारिशों को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इनमें असंतुलन को दूर करने के नाम पर सरकारी हस्तक्षेप का न्यौता निहित है और इस तरह ये सिफारिशें प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करती हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर तो इस मसले पर यूनेस्को से अलग हो गए और इन देशों के अलग होने से यूनेस्को को मिलने वाली आर्थिक मदद बंद हो गयी जिसकी वजह से यूनेस्को एक तरह से पंगु हो गया।

लेकिन अस्सी-नब्बे दशक की घटनाओं के उपरांत इस तरह की नई विश्व सूचना और संचार व्यवस्था की मांग भी बेमानी हो गयी। इसका सबसे मुख्य कारण तो यही था कि इस मांग को करने वाले सबसे प्रबल स्वर ही शांत हो गए। विकासशील देशों में इस मांग को उठाने वाले अधिकांश देशों ने आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के मॉडल का रास्ता छोड़कर उदार भूमंडलीकरण का रास्ता अपना लिया था। दूसरा प्रमुख कारण यह भी था कि यहां आते-आते सूचना क्रांति एक ऐसी मंजिल तक पहुंच चुकी थी जिसमें दूरसंचार,सेटेलाइट और कम्प्यूटर प्रोद्योगिकी के बल पर एक ऐसे तंत्र का उदय हुआ जिसमें सूचना समाचारों के प्रवाह पर किसी भी तरह का अंकुश लगाना संभव ही नहीं रह गया। विकासशील देश सूचना-समाचारों के जिस एकतरफा प्रवाह की शिकायत करते थे उसका आवेग इस नए दौर अब पहले से कहीं अधिक तेज हो गया और इसे रोक पाना वास्तविक रुप से संभव नहीं रह गया था।

नया परिदृश्य

सूचना क्रांति से निश्चय ही दुनिया एक तरह के वैश्विक गांव में परिवर्तित हो गयी। सूचना -समाचारों और हर तरह के मीडिया उत्पादों का प्रवाह बाधाविहीन होने के उपरांत वैश्विक मीडिया के स्वरूप में भी बड़ा परिवर्तन आया। पहले वैश्विक मीडिया जो विश्व भर में सूचना और समाचारों के प्रवाह का नियंत्रण करता था लेकिन उसका काफी हद तक एक देश के भीतर इसका सीधा नियंत्रण नहीं होता था-यानी नियंत्रण का स्वरूप अप्रत्यक्ष था और ये स्वदेश संगठनों से माध्यम से ही घरेलू बाजार में मीडिया उत्पाद वितरित करते थे। लेकिन आज वैश्विक मीडिया का प्रसार देशों की सीमा के भीतर तक हो चुका है जहां वो प्रत्यक्ष रूप से मीडिया के बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुके हैं। आज भले ही सूचना साम्राज्यवाद और सांस्कृतिक उपनिवेशवाद से जुड़े सवाल समय-समय पर उठते रहते हों और अनेक परिस्थितियों में इनका प्रतिरोध विभिन्न तरह के कट्टरपंथ के रूप में उभर रहा है( धार्मिक कट्टरपंथ और आतंकवाद के सामाजिक आधार का एक कारण यह भी है) लेकिन फिर भी विभिन्न देशों की सीमाओं के संदर्भ में इन अहसासों का कोई खास प्रतिरोध नहीं है।

मीडिया उत्पादों के वैश्विक प्रवाह के बाधाविहीन बनने के बाद एक नए तरह का सूचना और संचार का परिदृश्य पैदा हुआ है।
समकालीन परिदृश्य में मीडिया उत्पादों और इनके वितरण के माध्यमों में भी बुनियादी परिवर्तन आ रहे हैं। प्रिंट,रेडियो टेलीविजन और मल्टीमीडिया इंटरनेट बहुत सारे मीडिया उत्पाद और व्यापक विकल्प पेश कर रहे हैं। विकसित देशों इस उभरते बाजार में प्रिंट मीडिया पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विकसित देशों में समाचार पत्रों का सर्कुलेशन घट रहा है और अनेक पुराने और प्रतिष्ठित मीडिया संगठन बंद होकर बाजार से बाहर हो गए हैं। नए बाजार में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए लगभग हर समाचार पत्र और मीडिया संगठन इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है और इंटरनेट पर ये उपलब्ध हैं। लेकिन इंटरनेट पर इनकी मौजूदगी ने संकट को दूर करने की बजाय इसमें एक नया आयाम जोड़ दिया है। दरअसल विकसित देशों में जहां लगभग तीन-चौथाई लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और वह समाचार पत्रों को इंटरनेट पर ही पढ़ लेते है। इस वजह से समाचार पत्र पढे़ तो जा रहे हैं लेकिन वह सर्कुलेशन के दायरे से बाहर हो रहे और इसका समाचार पत्रों की बिक्री पर एक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

विकसित देशों में मीडिया बाजार एक ठहराव की स्थिति में आ गया है और एक मीडिया की कीमत पर दूसरे मीडिया के चयन की प्रक्रिया शुरु हुई है। इस कारण प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट के बीच एक तरह होड़ शुरु हो गयी है। भारत जैसे विकसाशील देशों में मीडिया बाजार में अभी ठहराव की स्थिति पैदा नहीं हुई है और हर मीडिया प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट का विस्तार हो रहा है। समाज के नए-नए तबके मीडिया बाजार में प्रवेश कर रहे हैं और अपनी क्रय शक्ति के आधार पर मीडिया उत्पादों के उपभोक्ता बन रहे हैं। भारत में यह माना जा रहा है कि लगभग 30 करोड़ लोग मध्यवर्गीय हो चुके हैं जिनके पास अतिरिक्त क्रय शक्ति है और इस कारण वे नए-नए उपभोक्ता उत्पाद के खरीददार होने की क्षमता रखते हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर वर्ष 3 करोड़ लोग मध्यमवर्ग की श्रेणी में शामिल हो रहे हैं और इन लोगों की क्रय शक्ति इतनी बढ़ रही है कि वे विभिन्न तरह के मीडिया उत्पादों के उपभोक्ता बन रहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में लोगों के मीडिया उत्पादों के उपयोग में भी परिवर्तन आ रहे हैं। अगर आज प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट के उपभोक्ताओं का तुलनात्मक उपभोग पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि लोगों की मीडिया उत्पादों को खरीदने की प्राथमिकताओं में लगातार परिवर्तन आ रहे हैं। इस संदर्भ में हम बात का उल्लेख करना सामयिक होगा कि रेडियो माध्यम की जब लगभग अनदेखी की जा रही थी तो अचानक ही इस माध्यम ने जबर्दस्त वापसी की और भारत में पिछले दो वर्षों में रेडियो माध्यम की वृद्धि दर अन्य माध्यमों से कहीं अधिक रही।

नया वैश्विक मीडिया

समकालीन मीडिया परिदृश्य में केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण की प्रक्रियाएं एक साथ चल रही हैं। एक ओर तो नई प्रोद्योगिकी और इंटरनेट ने किसी भी व्यक्ति विशेष को अपनी बात पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाने का मंच प्रदान किया है तो दूसरी ओर मुख्यधारा मीडिया में केन्द्रीकरण की प्रक्रिया भी तेज हुई है। पूरे विश्व और लगभग हर देश के भीतर मीडिया शक्ति का केन्द्रीकरण हो रहा है। एक ओर तो मीडिया का आकार विशालकाय होता जा रहा है और दूसरी ओर इस पर स्वामित्व रखने वाले संगठनों कॉर्पोरेशनों की संख्या कम होती जा रही है। पिछले कुछ दशकों से यह प्रक्रिया चल रही है और अनेक बड़ी मीडिया कंपनियों ने छोटी मीडिया कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया है। इसके अलावा कई मौकों पर बड़ी-बड़ी कंपनियों के बीच विलय से भी मीडिया सत्ता के केन्द्रीकरण को ताकत मिली है।

आज वैश्विक संचार और सूचना तंत्र पर चन्द विशालकाय बहुराष्ट्रीय मीडिया कॉर्पोरेशनों का प्रभुत्व है जिनमें से अधिकांश अमेरिका में स्थित हैं। बहुराष्ट्रीय मीडिया कॉर्पोरेशन स्वयं अपने आप में व्यापारिक संगठन तो हैं ही लेकिन इसके साथ ही ये सूचना-समाचार और मीडिया उत्पाद के लिए एक वैश्विक बाजार तैयार करने और एक खास तरह के व्यापारिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए ही काम करते हैं। इन कॉर्पोरेशनों के इस व्यापारिक अभियान में पत्रकारिता और सांस्कृतिक मूल्यों की कोई अहमियत नहीं होती। इस रूझान को आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट रूप से भी देखा जा सकता है। मोटे तौर पर यह कह सकते हैं कि वैश्विक मीडिया वैश्विक व्यापार के अधीन ही काम करता है और दोनों के उद्देश्य एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
पूरी वैश्विक मीडिया व्यवस्था पर इस वक्त मुश्किल से नौ-दस मीडिया कॉर्पोरेशनों का प्रभुत्व है और इनमें से अनेक कॉर्पोरेशनों का एक-तिहाई से भी अधिक कारोबार अपने मूल देश से बाहर दूसरे देशों में होता है। उदाहरण के लिए रूपर्ट मडॉक की न्यूज कॉर्पोरेशन का अमेरिका ,कनाडा, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया और लैटिन अमेरिका में मीडिया के एक हिस्से पर स्वामित्व है। जर्मनी के बर्टैल्समन्न कॉर्पोरेशन का विश्व के 53 देशों की 600 कंपनियों में हिस्सेदारी है। विश्व की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी एओएल टाइम वार्नर भी अमेरिका की है और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी वियाकॉम कंपनी भी अमेरिका की है जिनका विश्व के मीडिया बाजार के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण है। सोनी कॉर्पोरेशन शुरु में इलेक्ट्रोनिक्स के उत्पादों में नाम कमा चुका था लेकिन आज एक मीडिया कंपनी के रूप में दुनिया भर में इसकी एक हजार सहयोगी कंपनियां काम कर रही हैं। इनके अलावा डिज्नी, वियाकॉम, एमटीवी, टेली-कम्युनिकेशन इंक, यूनीवर्सल( सीग्राम), माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और याहू का भी एक बड़े बाजार पर कब्जा है जो लगभग दुनिया के हर देश में फैला हुआ है। अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक जैसी हथियार बनाने वाले कॉर्पोरेशन ने भी मीडिया जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी है और अमेरिका के एक प्रमुख समाचार चैनल एनबीसी पर इसका नियंत्रण है।

इन विशालकाय कॉर्पोरेशनों के बाद दूसरी परत के भी मीडिया संगठन हैं जिनका व्यापार दुनिया भर में बढ़ रहा है। इस वक्त विश्व में मीडिया और मनोरंजन उद्योग सबसे तेजी से उभरते सेक्टरों में से एक है और रोज नई-नई कंपनियां अपना नया और अलग मीडिया उत्पाद लेकर बाजार में कूद रही हैं। अधिकांश बहुराष्ट्रीय मीडिया कॉर्पोरेशन संचार के क्षेत्र के जुड़े कई सेक्टरों में काम कर रहे हैं जिनमें समाचार-पत्र और रेडियो और टेलीविजन चैनल के अलावा पुस्तक प्रकाशन, संगीत, मनोरंजन पार्क और अन्य तरह के मीडिया और मनोरंजन उत्पाद शामिल हैं। प्रोद्योगिक क्रांति ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी गतिविधियों के विस्तार के लिए अपार संभावनाओं को जन्म दिया है। आज अधिकांश बड़े मीडिया कॉर्पोरेशन दुनिया भर में अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। अनेक कॉर्पोरेशनों ने या तो किसी देश में अपनी कोई सहयोगी कंपनी खोल ली है या किसी देशी कंपनी के साथ साझेदारी कर ली है। हमारे देश में ही अनेक बहुराष्ट्रीय मीडिया कॉर्पोरेशनों के भारतीय संस्करण बाजार में उपलब्ध हैं। ये वैश्विक संगठन अपनी गतिविधियों के विस्तार के लिए स्थानीयकरण की ओर उन्मुख हैं और स्थानीय जरूरतों और रुचियों के अनुसार अपने उत्पादों को ढाल रहे हैं। इस तरह भूमंडलीकरण स्थानीयता का रूप ग्रहण कर रहा है और बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेशनों की ये स्थानीयता दरअसल उनके ही वैश्विक उपभोक्ता मूल्यों और व्यापार संस्कृति को प्रोत्साहित करते हैं।

इस संदर्भ में सांस्कृतिक उपनिवेशवाद की अवधारणा भी नया स्वरूप ग्रहण कर रही है और आज यह अवधारणा पहले से कहीं अधिक व्यापक गहरी और विशालकाय हो चुकी है। वैश्विक सूचना और संचार तंत्र पर आज पश्चिमी देशों का नियंत्रण और प्रभुत्व उससे कहीं अधिक मजबूत हो चुका है जिसे लेकर कुछ दशक पहले विकासशील देशों में विरोध के प्रबल स्वर उठ रहे थे। लेकिन आज अगर सांस्कृतिक उपनिवेशवाद पर पहले जैसी बहस नहीं चल रही है तो इसका मुख्य कारण यही है कि शीत युद्ध के बाद उपरांत उभरी विश्व व्यवस्था में विकासशील देशों की सामुहिक सौदेबाजी की क्षमता लगभग क्षीण हो गयी है। दूसरा शीत युद्ध के बाद दो विचारधाराओं के बीच संघर्ष का अंत हो गया और पश्चिमी विचारधारा ही प्रभुत्वकारी बन गयी और इतिहास के इस दौर में इसका कोई विकल्प नहीं उभर पाया। इन कारणों की वजह से पश्चिमी शैली की उदार लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था, आर्थिक स्तर पर मुक्त अर्थतंत्र और इनके विस्तार के लिए भूमंडलीकरण और विश्व बाजार के विस्तार - यही आज की विश्व व्यवस्था के मुख्य स्तंभ हैं। राजनीति और आर्थिकी के इस स्वरूप के अनुरूप ही सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य ढल रहे हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि मौजूदा विश्व व्यवस्था में पश्चिमी जीवन शैली और सांस्कृतिक मूल्यों का ही विस्तार हो रहा है और वैश्विक मीडिया इसमें अग्रणी भूमिका अदा कर रहा है। दरअसल भूमंडलीकरण की मौजूदा प्रक्रिया एक " टोटल पैकेज" है जिसमें राजनीति, आर्थिकी और संस्कृति तीनों ही शामिल हैं। मीडिया नई जीवनशैली और नए मूल्यों का इस तरह सृजन करता है इससे नए उत्पादों की मांग पैदा की जा सके और एक बाजार का सृजन किया जा सके। अनेक अवसरों पर मीडिया ऐसे उत्पादों की भी मांग पैदा करता है जो स्वाभाविक और वास्तविक रूप से किसी समाज की मांग नहीं होते हैं।

निष्कर्ष के तौर पर यह कह सकते हैं कि शीत युद्ध के उपरांत उभरी विश्व व्यवस्था पर राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से पश्चिम का दबदबा है और वैश्विक मीडिया को भी यही नियंत्रित करता है। मीडिया पर नियंत्रण का मतलब किसी भी व्यक्ति, देश, संस्कृति, समाज आदि की छवि पर भी नियंत्रण करना है और इसी नियंत्रण से सही-गलत के पैमाने निर्धारित होते हैं। मीडिया के नियंत्रण से विरोधी को शैतान साबित किया जा सकता है और अपनी तमाम बुराइयों को दबाकर अपनी थोड़ी सी अच्छाइयों का ढिंढोरा पीटा जा सकता है। मीडिया ऐसे मूल्य और मानक तय करता है जिनके आधार पर यह तय होता है कि कौन सा व्यवहार सभ्य है और कौन सा असभ्य ? इसी निर्धारण से सांस्कृतिक उपनिवेशवाद की सीमा शुरु होती है।

हिन्दी मीडिया

भारतीय मीडिया के मानचित्र पर भारी परिवर्तन आ रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा और एक हद तक ऐतिहासिक परिवर्तन भारतीय भाषाओं और खास तौर से हिन्दी भाषा के मीडिया का भारी विस्तार है। देश में एक तरह की मीडिया क्रांति अगर आयी है तो इसका मुख्य कारण हिन्दी मीडिया की चहुंमुखी वृद्धि और विकास है। सत्तर के दशक में नई प्रोद्योगिकी के आने के समय से ही हिन्दी मीडिया का विस्तार शुरु हो गया था। नई प्रोद्योगिकी से समाचारों को कई केन्द्रों से प्रकाशित करना संभव हो गया। इससे मीडिया तक लोगों की पहुंच का विस्तार हुआ और इसी के साथ साक्षरता बढ़ने से नए-नए लोग समाचार पत्र पढ़ने लगे और क्रयशक्ति बढ़ने से भी अधिक लोग समाचार पत्र खरीदने लगे। साक्षरता के संदर्भ में यह बात महत्वपूर्ण है हिन्दी भाषी क्षेत्रों में नव साक्षर केवल हिन्दी ही पढ़ लिख सकते थे जबकि अंग्रेजी पढ़-लिख सकने वाले पहले से ही समाचारपत्रों के पाठक थे। इसलिए पिछले कुछ दशकों में हिन्दीभाषी क्षेत्रों में समाचारपत्रों जितना भी विस्तार हुआ है उसका बहुत बड़ा हिस्सा हिन्दी मीडिया के खाते में ही जाता है। 70 के दशक के दौरान देश में राजनीतिक संघर्ष भी तेज हो चुका था। यह दौर विचारधारात्मक राजनीति संघर्ष का दौर था और इस राजनीतिक कारण से भी समाचारपत्रों में लोगों की रुचि बढ़ती चली गयी जिसकी वजह से समाचार पढने (खासकर हिन्दी समाचारपत्र) वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई।

आज देश में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पहले और दूसरे नंबर के समाचार पत्र हिन्दी में हैं। देश के दस सबसे बड़े समाचार पत्रों में 9 हिन्दी भाषा के हैं। मोटे तौर पर यह कह सकते हैं कि सत्तर के दशक में हिन्दी मीडिया में एक क्रांति की शुरुआत हुई। इस दौर में हिन्दी मीडिया का जबर्दस्त विस्तार हुआ और साथ ही इसके ढांचे और स्वामित्व में भी बड़े परिवर्तन आए। परंपरागत रूप से भारतीय मीडिया को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, और जिला स्तर पर बांटा जाता था। इस समाचार पत्र की क्रांति के दौर में क्षेत्रीय मीडिया का सबसे अधिक विस्तार हुआ और राष्ट्रीय मीडिया के भी उस हिस्से का भी विस्तार हुआ जिसने क्षेत्रीय मीडिया में प्रवेश किया। समाचार पत्रों के अनेक स्थानों के प्रकाशन और समाचारों के स्थानीयकरण से जिला स्तर का वह छोटा प्रेस विलुप्त हो जिसका सर्कुलेशन हजार-दो हजार होता था और जो स्थानीय समस्याओं पर केन्द्रित था। अब बड़े अखबार ही स्थानीय अखबार की जरूरतों को पूरा करने लगे।

नब्बे के दशक के मीडिया का व्यापारीकरण और विस्तार भी भारतीय भाषाओं पर ही केन्द्रित रहा है और इस विस्तार का सबसे बड़ा हिस्सा हिन्दी मीडिया का ही था। पिछले कुछ समय में मीडिया और मनोरंजन उद्योग में जो बेमिसाल वृद्धि हुई है वह मुख्य रूप से भारतीय और हिन्दी भाषा में ही हुई है। टेलीविजन ने मात्र दस वर्षों में एक बड़े उद्योग का रूप धारण कर लिया है। टेलीविजन ने आज देश के राजनीतिक और सामाजिक मानचित्र पर अपने लिए अहम और महत्वपूर्ण भूमिका अर्जित कर ली है। आज देश के पूरे मीडिया और मनोरंजन उद्योग में टेलीविजन का हिस्सा सबसे अधिक है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा केबल टेलीविजन का बाजार है। दरअसल टेलीविजन माध्यम अपने स्वभाव से अंतरंग मीडिया है और साथ ही यह मीडिया लोकप्रिय संस्कृति से भी काफी गहरे से संबद्ध रहता है। इस कारण टेलीविजन मीडिया का हिन्दी भाषी राज्यों में जो विस्तार हो रहा है वह एर तरह से हिन्दी मीडिया का ही विस्तार है। सिनेमा और मनोरंजन के क्षेत्र में हिन्दी मीडिया केवल हिन्दीभाषी प्रदेशों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश में ही अच्छा-खासा बाजार पैदा कर चुका है। इस इकाई में भारतीय मीडिया के विकास के जिन रुझानों का विवरण दिया गया है उसी दिशा में हिन्दी मीडिया की भी वृद्धि और विकास हो रहा है। दरअसल भारत की मौजूदा मीडिया क्रांति के बाद हिन्दी मीडिया का ही सबसे तेजतर विस्तार हुआ है और आने वाले समय में यह रुझान और भी प्रबल होने की संभावना है।

समाचार अवधारणा


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके लिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं।
समाचार की परिभाषा
लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे या शहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से ही समाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनके कारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनका महत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
समाचार की कुछ परिभाषा
      किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है – डॉ निशांत सिंह
 
      किसी घटना की नई सूचना समाचार है – नवीन चंद्र पंत
 
        वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो – नंद किशोर त्रिखा
 
      किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है – संजीव भनावत
 
 ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो – रामचंद्र वर्मा
समाचार के मूल्य
1 व्यापकता
समाचार का सीधा अर्थ है – सूचना। मनुष्य के आस – पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वोस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना। 
2 नवीनता
जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनी चाहिये। 
3 असाधारणता
हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में समाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य है कि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।
4 सत्यता और प्रमाणिकता
समाचार में कि, घटना की सत्यता या तथ्यात्मक होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी – उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं। 
5 रुचिपूर्णता
किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है। 
6 प्रभावशीलता
समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा। 
  7 स्पष्टता
एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।
संदर्भ 
https://sites.google.com/site/kaushalmms/samacara-lekhana-avadharana-aura-prakriya

फीचर लेखन

फीचर लेखन

फीचर
फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग होता है। फीचर का सामान्य अर्थ होता है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखों की तरह समीक्षात्मक लेख नही होता है।
फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव – जन्तु, तीज – त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति – परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रोचक विषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है।
फीचर के प्रकार
·          व्यक्तिपरक फीचर
·          सूचनात्मक फीचर
·          विवरणात्मक फीचर
·          विश्लेषणात्मक फीचर
·          साक्षात्कार फीचर
·          इनडेप्थ फीचर
·          विज्ञापन फीचर
·          अन्य फीचर
फीचर की विशेषतायें
·         किसी घटना की सत्यता या तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व होता है। एक अच्छे फीचर को किसी सत्यता या तथ्यता पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिये।
·         फीचर का विषय रोचक होना चाहिये या फीचर को किसी घटना के दिलचस्प पहलुओं पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर को शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये।
·         फीचर को ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।
·         फीचर को किसी विषय से संबंधित लेखक की निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।
·         फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।
·         फीचर को सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।
·         फीचर कीभाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ – साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये।
फीचर लेखन की प्रक्रिया
·         विषय का चयन
·         सामग्री का संकलन
·         फीचर योजना
विषय का चयन
किसी भी फीचर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।
सामग्री का संकलन
फीचर का विषय तय करने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।
फीचर योजना
फीचर से संबंधित पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।
फीचर लेखन की संरचना
·         विषय प्रतिपादन या भूमिका
·         विषय वस्तु की व्याख्या
·         निष्कर्ष
विषय प्रतिपादन या भूमिका
फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर।  मिका का आरेभ किसी भी प्रकार से किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।
विषय वस्तु की व्याख्या
फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश करना चाहिये।
निष्कर्ष
फीचर संरचना के इस चरण में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।
फीचर संरचना से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू
शीर्षक
किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके।
छायाचित्र
छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये।

फॉलोअप

 किसी घटना के खत्‍म होने के बाद, उसमें होने वाले विकास पर नजर रखना फॉलोअप कहलाता है। उदाहरण के लिए किसी सनसनीखेज हत्‍या के बाद पुलिस की जांच-पड़ताल और अदालत में अंतिम फैसले तक उस पर नजर रखना फॉलोअप कहलाएगा। बड़ी घटनाओं में दर्शकों में उत्‍सुकता बनी रहती है और वो उस घटना का अंजाम भी जानना चाहते हैं।
कोई जरूरी नहीं कि घटना के सामने आते ही उसके बारे में पूरी जानकारी मिल जाए या उस पर लोगों की प्रतिक्रिया तुरंत मिल जाए। इसलिए हर बड़ी घटना पर लगातार नजर बनाए रखने की जरूरत होती है। खबर पर नजर रखने और उसमें लगातार होने वाले डवलपमेंट से लोगों को अपडेट करते रहना ही फॉलोअप है।
फॉलोअप सिर्फ बड़ी खबरों की ही होनी चाहिए। खबर से जुड़ी हर नई बात स्‍टोरी में शामिल होनी चाहिए। इससे लोगों को घटना के बारे में ताजा जानकारी मिलती रहेगी और स्‍टोरी में ताजगी बनी रहेगी।
फॉलोअप इसलिए भी जरूरी है कि हर घटना एक क्रम से घटित होती है। शुरूआती दौर में खबर को पूरा मान लेना नासमझी होगी। हर रोज कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसका दूरगामी असर होता है और ऐसी खबरों पर लगातार नजर रखने की जरूरत भी होती है। रिपोर्टर को ध्‍यान रखना चाहिए कि खबर चाहे कितनी ही बड़ी क्‍यों न हो, उस पर लगातार नजर नहीं रखी जाए और घटनाक्रम में होने वाले डवलपमेंट को नजरअंदाज कर दिया जाए, तो उस खबर का व्‍यापक असर नहीं हो सकता।
किसी भी घटना का तभी महत्‍व है, जब वो लोगों को प्रभावित करे। एक पूरी खबर, लोगों को केवल ये ही नहीं बताती कि क्‍या हुआ है, बल्कि क्‍यों हुआ, और उस घटना का प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से किन लोगों पर असर हुआ, इसकी भी जानकारी देती है। इसके अलावा खबर की अहमियत तभी है, जब ये भी पता चले कि उसका दूरगामी असर क्‍या होगा।
रिपोर्टर को ध्‍यान रखना चाहिए कि कई बार फॉलोअप की स्‍टोरी, पहली स्‍टोरी से बेहतर हो सकती है और फॉलोअप वाली स्‍टोरी का असर भी पहली स्‍टोरी से व्‍यापक हो सकता है। इसलिए उसे अपनी किसी भी स्‍टोरी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। मुमकिन है कि फॉलोअप वाली स्‍टोरी से ही रिपोर्टर को स्‍कूप मिल जाए।
फॉलोअप की अ‍हमियत अमेरिका के वॉटरगेट काण्‍ड से समझी जा सकती है। कहानी चोरी की एक छोटी घटना से शुरू हुई थी, लेकिन रिपोर्टर ने लगातार अपनी पड़ताल जारी रखी और वॉटरगेट स्‍कैंडल सामने आया। मतलब कोई घटना होती है, तो तत्‍काल उस घटना की अ‍हमियत खुलकर सामने नहीं आती। सरकार, प्रशासन या आरोपी, बहुत सी जरूरी बातें छिपा लेते हैं। लेकिन लगातार पड़ताल के बाद उस घटना की असली कहानी तभी सामने आती है, जब रिपोर्टर ये जानने की कोशिश करे कि पर्दे के पीछे कुछ और भी जानकारी है या नहीं। फॉलोअप खासतौर पर उन हालात में बहुत जरूरी है, जब घटना तुरन्‍त घटी हो और उससे जुड़े कुछ सवालों का जवाब नहीं मिल रहा है। जरूरी है कि घटनाक्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाए, दर्शकों तक उसी क्रम में जानकारी भी पहुंचाई जाए। अगर इस तरह न्‍यूज कबर हो, तो दर्शकों के बीच रिपोर्टर और चैनल की विश्‍वसनीयता बढ़ती है।
संदर्भ 
http://www.newswriters.in/2015/12/15/types-of-television-reporting/