मंगलवार, 28 नवंबर 2017

क्‍या है डि‍जि‍टल

दूरसंचार नि‍यामक आयोग (ट्राई) की फरवरी 2014 की रि‍पोर्ट के अनुसार देश में कुल 90 करोड़ टेलीफोन उपभोक्‍ताओं में से 54 करोड़ शहरी और 35 करोड़ ग्रामीण हैं। वहीं इंटरनेट की बात करें तो 22 करोड़ इंटरनेट उपभोक्‍ताओं में 15 करोड़ से ज्‍यादा ब्रॉडबैंड का इस्‍तेमाल करने वाले हैं। खुद ट्राई का आंकड़ा यह कहता है कि‍ शहरों में जहां दूरसंचार घनत्‍व 144 प्रति‍शत है, जबकि‍ देश के ग्रामीण इलाकों में यह 41 प्रति‍शत से अधि‍क नहीं बढ़ पाई है। सरकार के ये आंकड़े इस तथ्‍य को साफ उजागर करते हैं कि‍ देश में दूरसंचार साधनों की उपलब्‍धता एक समान नहीं है। शहरों में यह बहुत ज्‍यादा है तो गांवों में बहुत कम।
इसका सबसे अधि‍क प्रभाव कनेक्‍टि‍‍वि‍टी पर पड़ता है। शहरों में जहां प्रति‍ दो कि‍लोमीटर पर एक मोबाइल टॉवर, मांगे जाने पर तुरंत टेलीफोन और इंटरनेट कनेक्‍टि‍वि‍टी मि‍ल जाती है, वहीं गांवों खासकर आदि‍वासी बहुल इलाकों में मीलों दूर तक मोबाइल के टॉवर दि‍खाई नहीं देते। वायरलाइन टेलीफोन और ब्रॉडबैंड कनेक्‍टि‍वि‍टी की बात करें तो वि‍कासखंड (ब्‍लॉक) से आगे टेलीफोन के केबल नहीं बि‍छाए जा सके हैं। भारत में अभी 4जी सेवाओं को शुरू करने की बात हो रही है, लेकि‍न गांवों में 2जी सेवाओं का भी वि‍स्‍तार नहीं हो पाया है। यानी हमारे गांव दूरसंचार सेवाओं के मामले में शहरों से 15 साल पीछे हैं। यह जमीनी हकीकत कई सवाल खड़े करती है। जैसे, अगर शहरों और गांवों के लोगों के लि‍ए मोबाइल और टेलीफोन की कॉल दरें एक समान ही है तो ग्रामीणों को एक कॉल करने के लि‍ए घर से नि‍कलकर नेटवर्क की तलाश में दूर क्‍यों चलना पड़ता है ? देश में स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन की नीति‍ में नि‍जी टेलीकॉम ऑपरेटरों के लि‍ए इस बात की बाध्‍यता क्‍यों नहीं है कि‍ वे शहरों और गांवों में एक समान गुणवत्‍ता की सेवाएं उपलब्‍ध कराएं ? मोबाइल नेटवर्क को सक्रि‍य रखने वाली वायु तरंगों (एयर वेव्‍स) को सुप्रीम कोर्ट ने प्राकृति‍क संसाधन मानते हुए सरकार से इनके समान वि‍तरण की व्‍यवस्‍था करने को कहा हुआ है। इसके बावजूद सरकार नि‍जी टेलीकॉम ऑपरेटरों को ग्रामीण इलाकों में भी शहरों की तरह दूरसंचार घनत्‍व बढ़ाने के लि‍ए बाध्‍य क्‍यों नहीं कर पाती ? ऐसा क्‍यों है कि‍ नि‍जी टेलीकॉम ऑपरेटरों की कुल कमाई पर लगाए गए सरकारी उपकर से प्राप्‍त आय को गांव तक इंटरनेट पहुंचाने में खर्च नहीं कि‍या जा रहा है ? शहरों में भी गरीब बस्‍ति‍यों के रहवासि‍यों की कनेक्‍टि‍वि‍टी बाकी संभ्रांत क्षेत्रों के मुकाबले बहुत कम है। शहरों के लगातार हो रहे वि‍स्‍तार और ढांचागत परि‍योजनाओं के कारण वि‍स्‍थापि‍त हो रहे लोगों की मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच और कनेक्‍टि‍वि‍टी प्रभावि‍त हो रही है। प्रशासन यह सुनि‍श्‍चि‍त कर पाने में काफी हद तक नाकाम रहा है कि‍ शहरों से दूर बसाई गई वि‍स्‍थापि‍तों की बस्‍ति‍यों तक बाकी मूलभूत सुवि‍धाओं की तरह दूरसंचार सेवाओं का भी वि‍स्‍तार हो सके।
सि‍र्फ संचार साधन ही क्‍यों, प्रसारण सेवाओं के डि‍जि‍टलीकरण की प्रक्रि‍या ने भी शहरों में एक बड़े वर्ग को सूचना और मनोरंजन के साधनों से वंचि‍त कि‍या है। मध्‍यप्रदेश के भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्‍वालि‍यर जैसे शहरों में गरीब बस्‍ति‍यों के वे परि‍वार जो डि‍जि‍टल केबल टीवी का महंगा खर्च नहीं उठा सकते, वे अभी कि‍सी तरह दूरदर्शन देख पा रहे हैं। हालांकि‍, इस साल के आखि‍र तक दूरदर्शन को भी डि‍जि‍टल करने की योजना है, जि‍ससे ऐसे परि‍वारों से सूचनाओं और मनोरंजन का एकमात्र स्रोत भी छि‍न जाएगा।
दूरसंचार मंत्रालय ने डि‍जि‍टल केबल और डीटीएच सेवाएं देने वाले ऑपरेटरों के लि‍ए नि‍यम तो बनाए हैं, लेकि‍न जमीन पर इनका अमल नहीं हो रहा है। केबल की महंगी दरें, एकमुश्‍त 1500 रुपए का खर्च और सेवाओं की गुणवत्‍ता में कमी ने भी वंचि‍तपन को बढ़ाया है। अगर शहरों में केबल और डीटीएच के रूप में डि‍जि‍टल टेलीवि‍जन के दो वि‍कल्‍प उपलब्‍ध हैं तो गांवों में केवल डीटीएच ही लोगों का एकमात्र वि‍कल्‍प है। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परि‍वारों के लि‍ए नि‍जी डीटीएच सेवाओं के लि‍ए प्रति‍माह 160-200 रुपए चुकाना एक महंगा वि‍कल्‍प है। यहां सरकार डीडी डायरेक्‍ट प्‍लस जैसी मासि‍क शुल्‍क से मुक्‍त सेवाओं को बढ़ावा दे सकती थी, लेकि‍न ऐसा न कर लोगों को बाजार के हवाले कि‍या गया है।
इंटरनेट, दूरसंचार और प्रसारण सेवाओं के मामले में पहुंच, कनेक्‍टि‍वि‍टी और गुणवत्‍तामूलक सेवाओं के लि‍ए शहरों और गांवों के बीच यह फासला असल में सूचना और अभि‍व्‍यक्‍ति‍ के उस मौलि‍क अधि‍कार का हनन है, जो संवि‍धान के अनुच्‍छेद 19(1ए) के तहत देश के प्रत्‍येक नागरि‍क को समान रूप से मि‍ला है। न तो सरकार और न ही नि‍जी ऑपरेटर संसाधनों की कमी का बहाना बनाकर इस हक को अनदेखा नहीं कर सकते। अगर शहर में बेहतर सेवाओं के लि‍ए संसाधन हैं तो गांव इससे अछूते नहीं रह सकते। सवाल संसाधनों के समान वि‍तरण का है। डि‍जि‍टल संचार में शहरों और गांवों के बीच के फासले की यही मूल वजह है।
स्रोत:- http://www.digitalinequality.org/the-divide/15-

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