बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, खासकर, पत्रकारिता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रही है। यह चिंता का विषय है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। विचार पंचायत इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
शाहरुख़ की चाल
आखिर शाहरुख़ खान देश को " माय नेम इज खान" फिल्म में संदेस क्या देना चाहते है . क्या हमारे समाज और हिन्दू मुस्लिम एकता को बाटना चाहते है या कहे तो उनका इरादा मुस्लिम लीडर बनाने का है . नहीं तो फिल्म के माध्यम से विदेशो में देश की छबि को दिखाना चाहते है . मुझे तो शाहरुख़ के इमान पर शक होता है . शोर शराबे करा कर कांग्रेस को अच्छा बना रहे है . या बाल ठाकरे जैसे रोड छाप नेता को हीरो बन्ने का मौका दे रहे है . कही बाल और शाहरुख़ में दोस्ती तो नहीं है ???????????????????????????????????? आप अपना सुझाव जरुर दे .
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