प्रस्तावना
कहते
हैं कि किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं, जमाना
बदल रहा है ..लोगों के पास समय की कमी होती जा रही है | किताबों
को पढने का भी तरीका परिवर्तित हुआ है | अब जमाना
डिजिटल है तो किताबें भी डिजिटल हुईं |
ई-पुस्तक (इलैक्ट्रॉनिक पुस्तक) का अर्थ है डिजिटल रुप में
पुस्तक । ई-पुस्तकें कागज की बजाय डिजिटल संचिका के रुप में होती
हैं जिन्हें कम्प्यूटर, मोबाइल एवं अन्य डिजिटल यंत्रों पर पढ़ा जा सकता
है । इन्हें इण्टरनेट पर भी छापा, बांटा या पढ़ा जा
सकता है । ये पुस्तकें कई फाइल
फॉर्मेट में होती हैं जिनमें पीडीऍफ (पोर्टेबल डॉक्यूमेण्ट फॉर्मेट), ऍक्सपीऍस
आदि शामिल हैं, इनमें
पीडीऍफ सर्वाधिक प्रचलित फॉर्मेट है । ई-पुस्तको
को पढ़ने के लिए कम्प्यूटर (अथवा मोबाइल) पर एक सॉफ्टवेयर की आवश्यकता होती है
जिसे ई-पुस्तक पाठक (eBook Reader) कहते
हैं । पीडीऍफ ई-पुस्तकों के लिए ऍडॉब रीडर तथाफॉक्सिट
रीडर नामक दो प्रसिद्ध
पाठक हैं । ई-बुक के सस्ता होने का कारण यह है कि इन
पर पहली बार आने वाली लागत के बाद अमूमन कोई लागत नहीं आती । एक बार ई-बुक विकसित
और प्रकाशित होने के बाद लेखक उसकी अनंत फाइलें बनाने के लिए स्वतंत्र है । इसलिए
लेखक की लागत बहुत कम होती है और इसका लाभ पाठक तक पहुँचता है । भारत में भी
ई-बुक्स का ट्रेंड तेजी से जोर पकड़ रहा है और अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं
में भी ई-बुक्स खूब दिखने लगी हैं । दिल्ली में सितंबर 2012 में
हुए विश्व प्रसिद्ध दिल्ली पुस्तक मेले में ई-बुक को मुख्य थीम बनाकर भारतीय
प्रकाशकों के संगठन ने भी ई-बुक्स में अपनी रुचि प्रकट की है । यह एक नए क्षेत्र में
उभरते हुए अवसरों का भी संकेत है । मेज़न का किंडल (kindle) और
सोनी का ई-बुक रीडर काफी लोकप्रिय हैं। हालाँकि ई-बुक पढ़ने के लिए खास तौर पर
ई-बुक रीडर खरीदने की जरूरत नहीं है और आप अपने कंप्यूटर, लैपटॉप या टैबलेट पर भी इनका आनंद ले
सकते हैं।
ई-पुस्तक बनाने के दो
तरीके हैं।
·
कम्प्यूटर
पर टाइप की गई सामग्री को विभिन्न सॉफ्टवेयरों के द्वारा ई-पुस्तक रुप में बदला जा
सकता है।
·
छपी
हुई सामग्री को स्कैनर के
द्वारा डिजिटल रुप में परिवर्तित करके उसे ई-पुस्तक का रुप दिया जा सकता है।
उद्देश्य
:
कहते हैं कि
किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं, जमाना बदल रहा है
..लोगों के पास समय की कमी होती जा रही है | किताबों को पढने
का भी तरीका परिवर्तित हुआ है | अब जमाना डिजिटल है तो किताबें भी
डिजिटल हुईं | शोध के
द्वारा यह जानने का प्रयास किया गया है कि पुस्तकों का डिजिटल रूप पाठकों और
छात्रों के बीच किस तरह से स्थापित हो रहा है तथा इससे पाठकों को क्या लाभ मिल रहा
है | ई पुस्तकों का पाठक वर्ग किस तरह का है | इसकी उपयोगिता क्या है ? किताबों के
विकल्प के रूप में ई बुक्स के महत्व को समझाना है |
शोध
प्राविधि :
इस शोध
को पूर्ण करने के लिए फोकस ग्रुप स्टडी
विधि का उपयोग किया है | इसके लिए सुविधानुसार निदर्शन पद्धति से माखनलाल
चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि के स्नातकोत्तर एवं एमफिल कक्षा के ऐसे दस
छात्र और दस छात्राओं का समूह बनाया जो ई बुक्स का प्रयोग कर रहे हैं | इस समूह के
बीच इस मुददे को लेकर वाद विवाद परिचर्चा कराया गया | इस दौरान इनके हर मुददे को
अंकित किया गया | साथ में कुछ सवाल भी किया गया ई बुक्स को लेकर | इसके अलावा
दिल्ली विश्वविध्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ हरीश
और जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविध्यालय दिलीप शक्य का साक्षात्कार
किया गया | दोनों ही प्रोफ़ेसर ई बुक्स का प्रयोग करते हैं तथा ई बुक्स के जानकार
है | इनका साक्षात्कार इस लिए लिया गया कि ई बुक्स के पढ़ने वालों की प्रवृति के
बारे में जाना जा सके |
विश्लेषण
:
परिचर्चा और साक्षात्कार के दौरान जो बातें निकल कर सामने आयी उसमें पता चला
कि जो लोग किताबों से दूर चले गए थे वो अब ई बुक्स के माध्यम से किताबों को पढ़ने
लगे हैं | तथा किताबों को सहेजने और उनकों संचय करने कि चिंता को दूर किया है ई
बुक्स ने | जिससे हर तबका लाभान्वित हुआ है | किताबों को छात्र अब बोझ नहीं समझता
है | इसके अलावा परिचर्चा में अन्य कई महत्वपूर्ण तथ्य निकल कर आये जो निम्नलिखित
है :-
·
जो युवा वर्ग तकनिकी रूप
से सक्षम है उसके लिए वरदान की तरह है | चाहे वह कोर्स बुक्स हो या अन्य तरह की
जानकारी वाली पुस्तकें हो | किताबें अब एक क्लीक में मोबाईल या टैब पर साथ हो लेती
है जिससे पाठक हर समय अपने आप को किताबों से जोड़े रखता हैं |
·
जो युवा वर्ग किताबों को
तकियानूसी समझाता था जिसके लिए लाईब्रेरी में बैठ कर किताबों का अध्ययन करना बहुत
मुश्किल था | ई बुक्स के आ जाने से उस वर्ग में से बहुत अच्छे पाठक और लेखक उभर कर
आये है |
·
ई बुक ऐसी तकनीकी किताब है, जो लेखक,
प्रकाशक
और पाठक सभी के लिए फ़ायदे का सौदा है। हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लेखक
ई-प्रकाशक के माध्यम से अपनी ई-बुक्स प्रकाशित करवा सकते हैं। ई-प्रकाशक की शुरूआत विशेष तौर पर
इन्हीं भाषाओं को ध्यान में रखते हुए हुई है क्योंकि इन्डिक यूनिकोड से संबंधित
जटिलताओं की वजह से आज भी हिंदी में ई-बुक्स का प्रकाशन चुनौतीपूर्ण है। अलबत्ता, ई-प्रकाशक इन सभी चुनौतियों को तकनीकी रूप से सुलझाने और
आकर्षक इंडिक ई-बुक्स के प्रकाशन में सक्षम है।
·
इस परिचर्चा में एक बड़ी बात सामने निकल
कर ये आयी कि अभी भी ई बुक्स के पढ़ने वालों में एकाग्रता की कमी होती है तथा वो
अपने विषय को बेहतर नहीं समझ पते हैं |
·
एक बात और सामने निकल कर आयी कि पाठकों
को ई पुस्तकों को पढ़ने में ज्यादा मज़ा नहीं आता है | ई बुक्स के पाठक भी प्रिंट
किताबों को ही बेहतर मानते हैं |
·
एण्ड्रॉय्ड
तथा आईओएस आदि टैबलेट आ जाने से प्रयोग और सुगम हुआ है। अब एक अलग डिवाइस नहीं
लेनी पड़ती, एक
टैबलेट में ही सब कार्य हो जाते हैं चाहे वह ईमेल अथवा नेट सर्फ़िंग हो या चैट
अथवा गेमिंग या फिर किताबें पढ़ना। एक डिजिटल कन्ज़्यूमर के लिए उत्तम कन्वर्जेन्स
(convergence) |
·
पहले
जहाँ बरिस्ता आदि में किताब पढ़ते कई लोग मिल जाते थे परन्तु ई-बुक पढ़ता कोई न
दिखता था वहीं आजकल एकाध लोग दिख जाते हैं टैबलेट अथवा ई-बुक रीडर पर पढ़ते हुए |
समय के साथ यह चलन और बढ़ेगा तथा और अधिक लोग ई-बुक्स को अपनाएँगे |
·
ई-बुक्स ने बाजार को बुरी
तरह प्रभावित किया है। किताबों की बिक्री घट रही है। पुस्तक-स्टेशनरी का व्यापार
भी डोलने लगा है। अब विद्यार्थी केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के बुक्स खरीदते हैं।
पढ़ने या लायब्रेरी के लिए साहित्य आदि की किताबें स्टालों में धुल खाती पड़ी रहती
हैं।
·
आज कल हिन्दी-अंग्रेजी के
अलावा अन्य भाषाओं में भी पुस्तकें-कविताएं सहित समूचा साहित्य इंटरनेट पर उपलब्ध
है। यह उन लोगों के लिए वरदान है जो देख नहीं सकते । ई-बुक्स को सिर्फ पढ़ा नहीं
बल्कि सुना भी जा सकता है। बुक्स अंतर्गत आप विश्व के नामचीन लेखकों-उपन्यासकारों, विचारकों, वैज्ञानिकों की रचनाएं सामग्री पढ़-सुन सकते हैं ।
·
आज समय बदल चुका है, लोग बाजार में किताबें ढूंढना-खरीदना नहीं चाहते हैं।
बाजार के बुक स्टालों तक पहुंचने वाले पाठक वर्ग की संख्या गिनती की बची है। कहा
जाता था कि 'ये तो किताब का कीड़ा है।' अब ये शब्दों से बना वाक्य इतिहास में कैद हो गया। एक
दौर था जब लोग लेखक-उपन्यासकारों के नये अंक-एडीशन के लिए लंबा इंतजार किया करते
थे । बड़े-छोटों सभी को पुस्तकों के लिए डाकघर के चक्कर लगाने पड़ते थे । पुस्तकों
को पढ़ने का एक जुनून होता था। अब लोग इंटरनेट पर ही किताबों को पढ़ना ज्यादा पसंद
करने लगे हैं ।
निष्कर्ष
ज्ञान का खजाना कहे जाने
वाली लाइब्रेरी की दुनिया आज कुछ जुदा अंदाज में हमारे सामने है। वक्त के साथ जो
स्वरूप बदला वो है- ई-बुक्स की दुनिया। संजय बारू की द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर
हो या फिर चेतन भगत की रिवोल्यूशन-2020, सुई मोंक किड की द इन्वेंशन ऑफ विंग की बात करें या फिर
रेंसम रिग्स की हेल्लो सिटी की, ई-बुक्स
की दुनिया में इन किताबों ने धूम मचाई। बुक्स स्टॉल पर पहुंचने से पहले ही इंटरनेट
के जरिए यह किताबें पाठकों के बीच पहुंच गईं।
कुल मिलाकर कहा जाए तो लाइब्रेरी की दुनिया से बाहर निकलकर
पाठक ई-बुक्स की दुनिया की लाइब्रेरी पंसद कर रहे हैं। सूई मोंक किड की द इन्वेंशन
ऑफ विंग की बात करें तो कुछ महीने में ही एक लाख से अधिक लोगों ने इस किताब को
इंटरनेट पर पढ़ा है। रेंसम रिग्स की हेल्लो सिटी को भी जमकर सराहना मिली। संजय
बारू की द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर भारत के साथ पूरी दुनिया में पढ़ी गई।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1. Catherine C. Marshall, Reading and Writing
the electronics books, Morgan and Claypool Publishers, 2009.
2. टक्साली
कांत रवि, इंटरनेट एवं ईमेल, टाटा मैक्ग्राहिल, 2010.
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