राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का सबसे बड़ा वैचारिक एवं स्वैच्छिक संगठन माना जाता है, जिसकी स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को नागपुर में की थी। इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रनिर्माण के लिए अनुशासित, राष्ट्रभक्त नागरिकों का निर्माण था (Goyal, 2019)।
आरंभिक वर्षों में संघ ने अपनी गतिविधियों को जनता से अपेक्षाकृत दूरी बनाकर रखा — क्योंकि संगठन को मुख्यतः सदस्य निर्माण और अनुशासनात्मक प्रशिक्षण पर केंद्रित रहना था। किंतु जैसे-जैसे सामाजिक परिस्थितियाँ, राजनीतिक परिदृश्य और संचार माध्यम बदलते गए, संघ को अपने विचारों के प्रचार-प्रसार और छवि-निर्माण के लिए नये रास्ते अपनाने पड़े (Dixit, 2017)।
आज संघ की छवि न केवल एक सांस्कृतिक संगठन की है, बल्कि एक व्यापक नेटवर्क के रूप में उभरी है जो शिक्षा, सेवा, मीडिया, पर्यावरण, महिला-सशक्तिकरण और राजनीति जैसे विविध क्षेत्रों में कार्यरत है। इस परिवर्तन की प्रक्रिया ही संघ की जनसंपर्क रणनीति में परिवर्तन का मूल विषय है।
RSS के संचार एवं प्रचार रणनीति पर कई शोध हुए हैं।
(क) ऐतिहासिक दृष्टि:
Andersen & Damle (1987) ने अपनी पुस्तक The Brotherhood in Saffron में संघ को एक सांस्कृतिक पुनर्निर्माण आंदोलन बताया है, जिसका प्रचार पारंपरिक माध्यमों से होता था।
(ख) मीडिया और छवि निर्माण:
Jaffrelot (2007) के अनुसार, 1980 के बाद संघ ने स्वयं को एक “सामाजिक सेवा” संगठन के रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया आरंभ की, ताकि उसकी राजनीतिक संबद्धता को एक सकारात्मक जन-छवि में बदला जा सके।
(ग) डिजिटल युग का प्रभाव:
Dutta (2023) और Pal (2024) बताते हैं कि डिजिटल मीडिया ने RSS को नए प्रकार की वैचारिक नेटवर्किंग और नैरेटिव नियंत्रण की सुविधा दी है — जिसमें ट्विटर, व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे मंचों का प्रयोग प्रमुख है।
(घ) जनसंपर्क सिद्धांतों से संबंध:
Grunig & Hunt (1984) के PR मॉडलों के अनुसार, RSS ने “two-way asymmetric communication” से धीरे-धीरे “two-way symmetric communication” की दिशा में यात्रा की है — यानी अब वह जनता से संवाद स्थापित करने की कोशिश करता है, न कि केवल प्रचार।
ऐतिहासिक विकास के चरण
प्रारंभिक काल (1925–1947): संगठनात्मक अनुशासन और सीमित संवाद
इस काल में संघ की प्राथमिकता संगठनात्मक एकता और प्रशिक्षण थी। शाखाएँ, स्वयंसेवक अभ्यास, और मौखिक संवाद ही मुख्य माध्यम थे। मीडिया से दूरी और आत्मनियंत्रित प्रचार इसका चरित्र था (Golwalkar, 1966)।
संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य “राष्ट्रभाव जागरण” था, न कि तत्काल लोकप्रियता। अतः जनसंपर्क “व्यक्तिगत प्रभाव” के स्तर पर था।
स्वतंत्रता के बाद (1947–1980): सामाजिक संस्थाओं का विस्तार
स्वतंत्रता के बाद संघ पर प्रतिबंध और आलोचनाएँ आईं। तब संघ ने अपने जनसंपर्क को “सेवा” और “शिक्षा” के माध्यम से पुनःस्थापित किया। विद्या भारती, सेवा भारती, विश्व हिंदू परिषद आदि संस्थाएँ इसी दौर में बनीं।
इन संस्थाओं ने संघ की छवि को सामाजिक उपयोगिता के रूप में पुनर्निर्मित किया (Andersen & Damle, 1987)।
1980–2000: राजनीतिक विस्तार और मीडिया रणनीति
भाजपा के उदय के साथ RSS ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने विचारों को राजनीतिक मंच पर पहुंचाया।
राम जन्मभूमि आंदोलन (1989–1992) संघ के जनसंपर्क इतिहास में निर्णायक मोड़ था। इसने पहली बार टेलीविजन, रैली, पोस्टर और सांस्कृतिक प्रतीकों का संगठित उपयोग किया (Jaffrelot, 2007)।
मीडिया को जनभावना-निर्माण के उपकरण के रूप में संघ ने स्वीकार किया।
2000–वर्तमान: डिजिटल संचार और नेटवर्क-आधारित प्रचार
21वीं सदी में संघ ने सोशल मीडिया, वेबसाइट, ब्लॉग, ई-पत्रिका, और डिजिटल अभियान को अपनाया।
अब RSS के पास अपने मीडिया चैनल हैं: Organiser, Panchjanya, Vivek, आदि।
Dutta (2023) के अनुसार, 2014 के बाद संघ की डिजिटल रणनीति ने “केंद्रित नैरेटिव कंट्रोल” और “विकेंद्रीकृत प्रचार नेटवर्क” दोनों को एक साथ जोड़ा।
संघ की जनसंपर्क रणनीतियाँ (PR Strategies of RSS)
रणनीति | विवरण | उदाहरण |
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1. शाखा-आधारित ग्रासरूट संवाद | स्थानीय स्तर पर आत्मीयता और विश्वास निर्माण | रोज़ाना शाखाएँ, स्वयंसेवक मिलन |
2. शिक्षा और सेवा के माध्यम से छवि निर्माण | समाजोपयोगी कार्यों से सकारात्मक छवि | ‘सेवा भारती’, ‘विद्या भारती’ |
3. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीकात्मक प्रचार | पर्व, यात्राएँ, उत्सव | ‘ग्राम विकास अभियान’, ‘संघ परिवार दिवस’ |
4. राजनीतिक संवाद का विस्तार | भाजपा और सहयोगी संगठनों के माध्यम से नीति-प्रभाव | चुनावी जनजागरूकता |
5. डिजिटल मीडिया नेटवर्किंग | सोशल मीडिया, वेबसाइट, मोबाइल ऐप्स | Twitter, WhatsApp ग्रुप्स |
डिजिटल युग का प्रभाव (Impact of Digital Media)
Pal (2024) और Mahapatra (2024) ने बताया कि संघ ने डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर multi-layered communication system विकसित किया है —
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Core Messaging: वैचारिक सामग्री (संघ दर्शन, उद्धरण, विचारक)।
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Narrative Reinforcement: सकारात्मक कहानियाँ, सेवा प्रकल्प।
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Counter-Discourse Management: आलोचनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया।
इसके माध्यम से संघ की “सार्वजनिक छवि” में यह परिवर्तन आया कि अब वह “खुले संवाद” और “सामाजिक नवाचार” की भाषा अपनाने लगा है।
Dutta (2023) के अध्ययन के अनुसार, RSS और उसके सहयोगी संगठनों के डिजिटल अभियान में “trust and emotion-based persuasion” का प्रयोग व्यापक रूप से होता है।
संघ की जनसंपर्क रणनीति एक संगठित, बहुस्तरीय और अनुकूलनशील प्रणाली के रूप में विकसित हुई है।
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प्रारंभ में, संवाद सीमित और नियंत्रित था;
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मध्यकाल में, समाजोपयोगी संस्थानों ने ‘सॉफ्ट-पावर’ का रूप दिया;
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और वर्तमान में, डिजिटल मंचों ने इसे ‘स्मार्ट-पावर’ में परिवर्तित कर दिया।
Grunig’s Symmetry Theory के अनुसार, संघ अब “feedback-oriented communication” की दिशा में आगे बढ़ा है — उदाहरणस्वरूप, उसकी वेबसाइटों पर “प्रश्न/सुझाव” अनुभाग, सामुदायिक संवाद, और सोशल मीडिया फीडबैक।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जनसंपर्क रणनीति में परिवर्तन एक निरंतर और सुनियोजित प्रक्रिया रही है।
1925 से लेकर आज तक संघ ने समाज और तकनीक की बदलती प्रकृति के अनुसार अपने संवाद-माध्यमों, स्वरूपों और उद्देश्यों को ढाला है।
अब संघ केवल शाखाओं तक सीमित संगठन नहीं रहा; वह शिक्षा, सेवा, संस्कृति और डिजिटल संवाद का समन्वित माध्यम बन चुका है।
इस परिवर्तन की दिशा यह दर्शाती है कि जनसंपर्क केवल प्रचार नहीं, बल्कि “सामाजिक संवाद और वैचारिक विस्तार” की प्रक्रिया है।
संदर्भ
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Andersen, W. K., & Damle, S. D. (1987). The Brotherhood in Saffron: The Rashtriya Swayamsevak Sangh and Hindu Revivalism. New Delhi: Vistaar Publications.
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Dutta, M. J. (2023). Digital Platforms, Hindutva, and Disinformation. Taylor & Francis.
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Goyal, D. R. (2019). Rashtriya Swayamsevak Sangh. New Delhi: Rupa Publications.
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Golwalkar, M. S. (1966). Bunch of Thoughts. Bangalore: Sahitya Sindhu.
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Jaffrelot, C. (2007). Hindu Nationalism: A Reader. Princeton University Press.
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Mahapatra, S. (2024). Social Media Strategies of Indian Political Organisations. Routledge.
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Pal, F. (2024). How the RSS Obscures Its Operational Scale. The Wire Analysis Report.
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Dixit, P. (2017). Hindutva and Communication in Contemporary India. Sage Publications.
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