शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सही मायने में रोजगार देता डेयरी उद्योग


लेखक- शिवेन्दु राय 
कोई भी उद्योग और उससे जुड़ा रोजगार तब सही माना जाना चाहिए, जब उससे जुड़े कर्मचारी या पेशेवर को अपने मूल या जड़ से अलगाव न होने दे| अगर यहीं रोजगार गृह क्षेत्र या घर में रह कर किया जा सके तो इस अलगाव वाली स्थिति से बचा जा सकता है| देश में लगभग सभी राज्यों को रोजगार की दृष्टि से पूर्ण नहीं कहा जा सकता है क्यूंकि कोई भी राज्य 100 प्रतिशत रोजगार देने में सक्षम नहीं है| इसके कई कारण है जिसमें शिक्षा का आभाव, उद्योग धंधों का आभाव, तकनिकी दक्ष लोगों की कमी और अत्यधिक बेरोजगारी प्रमुखता से है| बिहार में रोजगार दिलाने में कारगर होने वाले सभी मूलभूत आवशयकताओं का आभाव है| जिससे यहाँ के लोग पलायन कर दूसरे राज्यों में जाने पर विवस है| वर्तमान में डेयरी उद्योग ने बिहार के बेरोजगारों को बृहद पैमाने पर जड़ से जुड़े रह कर रोजगार देने का काम कर रहा है| सिमित संसाधनों और तकनिकी दक्षता के आभाव के बावजूद जिन उद्योगों से रोजगार मिले, वहीँ सही मायने में रोजगार देने वाला उद्योग कहा जा सकता है| आबादी के बड़े हिस्से को यह जानकारी नहीं होगी कि वर्ष 2020 तक डेरी उद्योग का कारोबार दस लाख करोड़ रुपए से कहीं आगे निकल चुका होगा। जबकि मात्र चंद वर्षों पूर्व यानी वर्ष 2005 में यह कारोबार लगभग सवा दो लाख करोड़ रुपए के बराबर हुआ करता था। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों लोगों को आजीविका का जरिया मिला हुआ है।
इस कड़ी में बिहार राज्य दूध को-ओपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड का नाम पहले सहकारी उद्योग के रूप में लिया जा सकता है| इसकी स्थापना 1983 डेयरी विकास के कार्यक्रम एजेंसी ‘आनंद’ के माध्यम से हुआ था, जो बाद में बिहार राज्य डेयरी निगम(COMFED) को सौंप दिया गया| वर्तमान में यह दस जोन में अपना विस्तार कर बिहार और झारखण्ड के लगभग 60 जिलों के पशुपालकों को अपने दूध बेचने और खरीदने का केंद्र प्रदान किया है और साथ ही बेरोजगारों को रोजगार देने का काम किया है|  सुधा के उत्पाद अब बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं उत्तर पूर्वी राज्यों के 160 शहरों में उपलब्ध हैं|
बिहार में आठ जोन में अभी यह कार्य कर रहा है, यह समिति सुधा के नाम से अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेच रही है| 

बिहार के आठ जोन में वैशाली पाटलिपुत्र दूध संघ (VPMU) के नाम से पटना, वैशाली, नालंदा, सारण और शेखपुरा जिले में कार्य कर रहा है| इस जोन में पटना जिले में 1395 गाँव है, वैशाली में 1422, और शेखपुरा में 310 गाँव है, जिसमें हर 3 गाँव पर एक दूध क्रय-विक्रय केंद्र समिति ने खोल रखा है जिसमें प्रत्यक्ष रूप से हर केंद्र पर 1 व्यक्ति को रोजगार प्राप्त है| इसके हिसाब से इन 3 जिलों में एक हजार लोगों को रोजगार प्राप्त है|
डॉ. दूध संघ(DRMU) बरौनी जोन में बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय और पटना के कुछ हिस्से को शामिल किया गया है| बेगूसराय जिले में 1229 गाँव, खगड़िया में 306 गाँव और लखीसराय में 479 गाँव है, जिसमें इस उद्योग से केवल केंद्र पर ही लगभग सात सौ बेरोजगारों को रोजगार मिला है|
तिरहुत दूध संघ (TIMUL), मुजफ्फरपुर जोन में मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, सिवान और गोपालगंज जिला शामिल है| मुजफ्फरपुर जिले में 1811 गाँव, सीतामढ़ी में 845 गाँव, शिवहर में 207 गाँव, पूर्वी चंपारण में 1344 गाँव, पश्चिम चंपारण में 1483 गाँव, सिवान में 1528 गाँव और गोपालगंज में 1566 गाँव हैं| इस हिसाब से देखा जाये तो लगभग तीन हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है| सिवान जिले के ग्राम जमुआँव केंद्र के संचालक सोनू जी राय बताते हैं कि पशुपालकों में उम्मीद की किरण दिखायी देने लगी है वो अब कई उन्नत किस्म के दुधारू पशुओं को पालने लगे हैं| दूध का उचित मूल्य मिलने लगा है तथा साथ ही साथ सुधा द्वारा मवेशियों के लिए समय-समय पर कैम्प लगा कर पशुपालकों को मार्गदर्शन दिया जाने लगा है, जिससे वैज्ञानिक ढंग से पशुपालन होने लगा है|  
मिथिला मिल्क यूनियन (MMU), समस्तीपुर जोन में समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी जिला शामिल है, जिसमें समस्तीपुर में 1260 गाँव, दरभंगा में 1277गाँव और मधुबनी में 1115 गाँव हैं| जिसमें से इस दुग्ध उद्योग में गाँव के केन्द्रों के माध्यम से लगभग 12 सौ बेरोजगारों को रोजगार प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त है, जो पहले दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों में सीजनल रोजगार के लिए जाते थे| इस उद्योग ने इस क्षेत्र में किसानों को काफी हद तक आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है| समस्तीपुर क्षेत्र के मवेशी पालक संजय सिंह कहते हैं कि पहले दूध का उचित मूल्य नहीं मिलता था और पशुओं को पालना और दूध बेचना अच्छा नहीं माना जाता था| आज सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा है| मिथिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लि., समस्तीपुर ( मिथिला दुग्ध संघ समस्तीपुर डेयरी ) प्रबंध निदेशक डीके श्रीवास्तव ने बताया मिथिलांचल में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने और खासकर सुदूर गावों में निचले स्तर के किसानों को इससे अधिक से अधिक जोड़ने के लिए मिथिला दुग्ध संघ लगातार काम कर रहा है। हमारे संस्थान की पूरी कोशिश रहती है की हर किसान की आर्थिक उन्नति में हम अधिक से अधिक सहयोग करते रहे . हमें पूर्ण उम्मीद है की डेयरी अवसंरचना योजनाकिसानो की आर्थिक प्रगति के साथ साथ सामाजिक स्तर में भी अमूल परिवर्तन लाएगी|
शाहाबाद दूध संघ (SMU), आरा जोन में भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास जिला शामिल है, जिसमें भोजपुर में 1209 गाँव, बक्सर जिले में 1142 गाँव, कैमूर जिले में 1700 गाँव और रोहतास जिले में 2072 गाँव है| जिसमें इस उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से गाँव के केन्द्रों में दो हजार व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त है| यह क्षेत्र चावल का क्षेत्र कहलाता है, इस क्षेत्र में मवेशी पालना सबसे आसान है, लेकिन अभी तक इस उद्योग आर्थिक दृष्टि से ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था| सुधा ने इस क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया है अब पशुपालक कई मवेशियों को पालने लगे है, जिससे उनके आय में इजाफा देखने को मिल रहा है| इस क्षेत्र के दुग्ध केंद्र के संचालक विनय तिवारी कहते है कि अभी बहुत संभावना है अगर सरकारी सहायता मिले तो पुरे बिहार को यही क्षेत्र दूध दे सकता है और इस क्षेत्र के लोगों को कहीं रोजगार तलाशने की जरुरत नहीं पड़ेगी| 
विक्रमशिला दूध संघ (VIMUL), भागलपुर जोन में भागलपुर, मुंगेर, बांका, जमुई और खगरिया जिले का हिस्सा शामिल है, जिसमें भागलपुर जिले में 1515 गाँव, मुंगेर जिले में 923 गाँव, बांका जिले में 2000 गाँव और खगड़िया जिले के 306 गाँव है| जिसमें इस दुग्ध उद्योग में गाँव के केन्द्रों में लगभग 16 सौ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप में रोजगार प्राप्त हुआ है| सुधा केंद्र संचालक मदन यादव बताते है कि पहले वह दिल्ली में नौकरी करते हैं लेकिन सही मायने में न तो आर्थिक और न ही मानसिक रूप में अपने काम से संतुष्ट थे, लेकिन अब गाँव में अपने सभी कामों के साथ इस केंद्र का सफल संचालन कर रहे हैं और आर्थिक रूप से भी संबल होते जा रहे हैं|
मगध डेयरी परियोजना (MDP), गया जोन में गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल और नवादा जिला शामिल है, जिसमें गया जिले में 2886 गाँव,  औरंगाबाद जिले में 1884 गाँव, जहानाबाद जिले में 93 पंचायत, अरवल जिले में 335 गाँव और नवादा जिले में 1099 गाँव है| जिसमें लगभग 24 सौ लोगों को केवल दूध केन्द्रों पर रोजगार प्राप्त है| इस क्षेत्र में यादव समुदाय की बहुलता के कारण भी दूध उत्पादन का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है| इस क्षेत्र में सुधा से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दस हजार लोग मगध डेयरी परियोजना के साथ काम कर रहे हैं| इस उद्योग के अलावा कोई भी इतनी बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन करने वाला लघु उद्योग इस क्षेत्र में काम नहीं कर रहा है|
कोसी डेयरी प्रोजेक्ट (KDP), पूर्णिया जोन में पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जिला शामिल है| जिसमें पूर्णिया जिले में 1226 गाँव, कटिहार जिले में 1547 गाँव, अररिया जिले में 751 गाँव, किशनगंज जिले में 802 गाँव, सहरसा जिले में 468 गाँव, सुपौल जिले में 556 गाँव और मधेपुरा जिले में 449 गाँव हैं| जिसमें प्रत्यक्ष रूप से केन्द्रों के माध्यम से लगभग दो हजार लोगों को रोजगार प्राप्त है| यह क्षेत्र हमेसा से दूध उत्पादन में समृद्ध रहा है, क्यूंकि इस क्षेत्र का मौसम और भोगौलिक संरचना पशुओं के अनुकूल है| इस क्षेत्र में पशुपालक किसानों की अधिकता भी है| इस क्षेत्र के दूध से बने उत्पाद देश भर में प्रसिद्ध हैं|
गाँव के सभी केन्द्रों के सफल संचालय के लिए आज कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा गया है, जिसको चलने और मोनिटरिंग के लिए सुधा ने लगभग 100 इंजीनियर को रखा है| हर जिले में केन्द्रों से दूध लाने के लिए किराये पर वाहन रखा गया है, जिसमें हर जिले में लगभग 100 वाहन चालक को रोजगार मिला है, जिसके हिसाब से देखा जाये तो इन दो पदों से 60 जिलों से लगभग 12 हजार लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है| इसके अलावा प्लांट में 8 हजार लोग कार्यरत है जो सुधा के कर्मचारी है| लेकिन बाकि और पद स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाले हैं| हर केंद को सोलर लाइट से जोड़ा गया है जिससे केंद्र संचालक को कोई असुविधा न हो सके| किसानों और पशुपालकों की दृष्टि से देखे तो इस उद्योग के आने से दूध का उचित मूल्य मिलने लगा है| केंद्र संचालक सोनू जी राय बताते हैं कि दूध किसान से आता है। दूध की जांच के आधार पर इसकी कीमत तय की जाती है| 28 से 60 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक्री होती है|

सिवान जिले के ग्राम जमुआँव के पशुपालक मनोज राय के अनुसार, कृषि प्रधान देश होने के बावजूद युवाओं की करियर प्राथमिकता सूची में कृषि या इससे संबद्ध विभिन्न क्षेत्रों का कोई स्थान प्रायः नहीं देखने को मिलता है। निस्संदेह इसे विडंबना के अतिरिक्त कुछ और नहीं कहा जा सकता है। बिहार में अब डेरी उद्योग से आशय अब महज दुधारू पशुओं का पालन अथवा इनके दूध की बिक्री तक सीमित नहीं रह गया है। दूध से तैयार प्रसंस्कृत उत्पादों की लंबी श्रृंखला की इसमें भूमिका तेजी से निरंतर बढ़ रही है। इन उत्पादों में खोया, मक्खन, पनीर, दही, आइसक्रीम चॉकलेट्स, बेबी फूड, स्किम्ड मिल्क, लस्सी, घी, छैना तथा अन्य प्रकार के डिब्बाबंद प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उत्पादन किया जा रहा है। 

पेशे से शिक्षक और पशुपालक मधुकर प्रसाद का कहना है कि आजकल डेरी फार्म का कारोबार शुरू कर के कोई बेरोजगार या किसान खासी कमाई कर रहा है| पारंपरिक खेती से ऊब चुके या घाटा उठा चुके किसानों के लिए डेरी फार्म सौगात की तरह है| सब से खास बात यह है कि सरकार और कई संस्थाएं इस कारोबार को चालू करने के लिए कई तरह की सुविधाएं मुहैया करा रही हैं, जिस का फायदा उठा कर खुद की माली हालत को सुधारा जा सकता है और कुछ जरूरतमंदों को रोजगार भी दिया जा सकता है| उनका कहना है कि वो अब अपने परिवार में दूध का भरपूर सेवन करते हैं उसके बाद जो बचता है उसको केंद्र पर बेच आते हैं जिससे आय भी होने लगा है| लगभग सभी पशुपालन करने वालों की स्थिति बेहतर हुयी है|

आज बिहार में डेयरी उद्योग स्‍थापित करने पर युवाओं को राज्‍य सरकार 15 से 30 फीसद प्रति माह की सब्सिडी दे रही है। स्वरोजगार के तौर पर डेयरी फार्मिंग का व्यापार स्थापित करने के लिए गांव स्तर पर दूध उत्पाद बनाने, दुधारू पशुओं की खरीददूध दुहने की मशीनों और बछड़ों के पालन के लिए यह सब्सिडी दी जा रही है।
बिहार के पशुपालन, डेयरी विकास एवं मछली पालन मंत्री पशुपति के पारस ने बताया कि राज्य में डेयरी फार्मिंग को लाभप्रद धंधा बनाने के लिए व्यापक स्तर पर नीति बनाई जा रही है। इसके तहत राज्य के हर जिले में बेरोजगार नौजवानों को डेयरी फार्मिंग द्वारा स्वरोजगार दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार की तरफ से डेयरी फार्मिंग के साथ जुड़े किसानों और युवाओं के लिए दूध की लागत अनुसार कीमत और दूध के उपभोग के लिए दूसरे राज्यों में मार्केटिंग स्थापित करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। युवाओं को डेयरी के लाभप्रद धंधों के साथ जोड़ने के लिए युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
भविष्य में इस उद्योग के माध्यम से बिहार में सबसे अधिक रोजगार सृजन करने का प्रयास किया जा रहा है जिसमें 42.52 करेाड़ रुपये का समस्तीपुर दूध संयंत्र और 35 करोड़ रुपये का हाजीपुर संयंत्र शामिल है| इनके अलावा सुपौल में 26.75 करोड़ रुपये की लागत से तैयार डेयरी संयंत्र, क्रमश: 13.40 करोड़ रुपये और 17 करोड़ रुपये की लागत बिहारशरीफ एवं पटना आईसक्रीम संयंत्र, 10 करोड़ रुपये के निवेश से बना पटना पशु आहार कारखाना शामिल हैं| जो रोजगार की दृष्टि से वरदान साबित हो सकता है|




गुरुवार, 29 नवंबर 2018

नोम चॉम्स्की और संचार

नोम चॉम्स्की को जेनेरेटिव ग्रामर के सिद्धांत का प्रतिपादक एवं बीसवीं सदी के भाषाविज्ञान में सबसे बड़ा योगदानकर्तामाना जाता है। उन्होंने जब मनोविज्ञान के ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक बी एफ स्कीनर के पुस्तक वर्बल बिहेवियर की आलोचना लिखीजिसमें 1950 के दशक में व्यापक स्वीकृति प्राप्त व्यवहारवाद के सिद्दांत को चुनौती दीतो इससे काग्नीटिव मनोविज्ञान में एक तरह की क्रांति का सूत्रपात हुआजिससे न सिर्फ़ मनोविज्ञान का अध्यन एवं शोध प्रभावित हुआ बल्कि भाषाविज्ञानसमाजशास्त्रमानवशास्त्र जैसे कई क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन आया।

आर्टस ऐंड ह्यूमैनिटिज साइटेशन इंडेक्स के अनुसार 1980-92 के दौरान जितने शोधकर्ताओं एवं विद्वानों ने चाम्सकी को उद्धृत किया है उतना शायद ही किसी जीवित लेखक को किया गया हो। और इतना ही नहींवे किसी भी समयावधि में आठवे सबसे बड़े उद्धृत किये जाने वाले लेखक हैं।
एवरम नोम चॉम्स्की प्रमुख भाषावैज्ञानिक दार्शनिकराजनैतिकएक्टिविस्ट लेखक एवं व्याख्याता हैं। संप्रति वे मसाचुएट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालॉजी के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर भी हैं।


चॉम्स्की का जन्म दिसंबर 1928 को अमेरिका के फिलाडेल्फिया प्रांत के इस्ट ओकलेन में हुआ था। इनके पिता यूक्रेन में जन्में श्री विलियम चॉम्स्की (1896–1977) थेजो हीब्रू के शिक्षक एवं विद्वान थे। उनकी माता एल्सी चॉम्स्की बेलारूस से थी लेकिन वे अमेरिका में पली बढ़ी थीं।
नोम चॉम्स्की को जेनेरेटिव ग्रामर के सिद्धांत का प्रतिपादक एवं 20 वीं सदी के भाषाविज्ञान में सबसे बड़ा योगदान कर्ता माना जाता है। उन्होंने जब मनोविज्ञान के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक बी.एफ स्कीनर के पुस्तक वर्बल बिहेवियर’ की आलोचना लिखीजिसमें 1950 के दशक में व्यापक स्वीकृति प्राप्त व्यवहारवाद के सिद्धांत को चुनौती दीतो इससे संज्ञानात्मक मनोविज्ञान में एक तरह की क्रांति का सूत्रपात हुआ। जिससे न सिफ‍र् मनोविज्ञान में अध्ययन एवं शोध प्रभावित हुआ बल्कि भाषा विज्ञानसमाजशास्त्र जैसे कई क्षेत्रों में आमूल चूल परिवर्तन आया।
1960 के दशक के वियतनाम युद्ध की आलोचना में लिखी पुस्तक द रिसपांसिबिलिटी ऑफ इंटेलेक्चुअल्स के बाद चाम्सकी खास तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया के आलोचक एवं राजनीति के विद्वान के रूप में जाने जाने लगे। वामपंथ एवं अमरीका की राजनीति में आज वे एक प्रखर बौद्धिक के रूप में जाने एवं प्रतिष्ठित किए जाते हैं। अपने राजनैतिक एक्टिविजम एवं अमेरिका की विदेश नीति की प्रखर आलोचना के लिए आज उन्हें पूरी दुनिया में जाना जाता है।
आर्टस एंड ह्युमैनिटिक्स साइटेशन इंडेक्स’ के अनुसार 1980–92 के दैरान जितने शोधकर्ताओं एवं विद्वानों ने चॉम्स्की को उद्धृत किया है उतना शायद ही किसी जीवित लेखक को किया गया हो और इतना ही नहीं वे किसी भी समयावधि में आठवें सबसे बड़े उद्धृत किये गये लेखक हैं।
1960 
के दशक के वियतनाम युद्ध की आलोचना में लिखी पुस्तक द रिसपांसबिलिटी आफ इंटेलेक्चुअल्स’ के बाद चॉम्स्की खास तौर पर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया के आलोचक एवं राजनीति के विद्वान के रूप में प्रसिद्ध हुए। वामपंथ एवं अमेरिका की राजनीति में आज वे एक प्रखर बौद्धिक के रूप में जाने एवं प्रतिष्ठित किये जाते हैं।
चॉम्स्की को पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय से 1955 में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई। उन्होनें अपने शोध का काफी महत्वपूर्ण हिस्सा हावर्ड विश्वविद्यालय से हावर्ड जूनियर फेलो के रूप में पूरा किया था । उनके डाक्टरेट उपाधि के लिए किया गया शोध बाद में पुस्तकाकार के रूप में 1957 में सिंटैक्टिक स्ट्रक्चर्स’ के रुप में सामने आयाजिसे उस समय तक की श्रेष्ठ पुस्तकों में शुमार किया गया था।
1955 
में ही चॉम्स्की मसाचुएट्स तकनीकी संस्थान (MIT) में नियुक्त हुए और 1961 में उन्हें आधुनिक भाषा एवं भाषा विज्ञान विभाग में प्रोफेसर का दर्जा दिया गया। 1966–1976 तक वे फेरारी पी. बोर्ड प्रोफेसर नियुक्त हुए। 2007 की स्थिति के अनुसार वे लगातार 52 वर्षों तक MIT में प्रध्यापन का कार्य कर चुके हैं।
चॉम्स्कीयन भाषाविज्ञान की शुरूआत उनकी पुस्तक सिंटैक्टिक स्ट्रक्चर्स’ से हुई मानी जा सकती है जो उनके पीएच.डी. के शोध, ‘लाजिकल स्ट्रक्चर्स आफ लिंग्विस्टिक थीयरी’ का परिमार्जित रूप था। इस पुस्तक के द्वारा चॉम्स्की ने पूर्व स्थापित संरचनावादी भाषा वैज्ञानिकों की मान्यताओं को चुनौती देकर ट्रांसफार्मेशनल ग्रामर’ की बुनियाद रखी। इस व्याकरण ने स्थापित किया कि शब्दों के समुच्चय का अपना व्याकरण होता है जिसे औपचारिक व्याकरण द्वारा निरूपित किया जा सकता है और खासकर सन्दर्भ युक्त व्याकरण द्वारा जिसे ट्र्रांसफारर्मेशनल गा्रमर के नियमों द्वारा व्याख्यायित किया जा सकता है।
चॉम्स्की की महानता इससे स्पष्ट हो जाती है कि एक प्रसिद्ध कम्प्यूटर वैज्ञानिक डोनाल्ड क्नूथ तो यहां तक कहते हैं कि चॉम्स्की की किताब से मैं इतना प्रभावित हुआ कि 1961 में अपने साइंटिफिक प्रोजेक्ट के दौरान इसे हमेशा अपने साथ रखता था और सोचता था कि भाषा के इस गणितीय व्याख्या का प्रयोग मैं प्रोग्रामन के लिए कैसे कर सकता हूं।
चॉम्स्की के अन्य कार्यों में एक महत्वपुर्ण कार्य मास मीडिया की व्याख्या का भी रहा है जिसकी वजह से मास मीडिया के क्षेत्र में खासकर अमेरीकी मीडिया और उसके गठनकार्य प्रणाली एवं सीमाएं काफी खुलकर सामने आयीं और बहस का मुद्दा बन गयीं ।
एडवर्ड सईद एवं चॉम्स्की की किताब मेन्युफैक्चरिंग कांसेट द पॉलिटीकल इकोनॉमी आफ मास मीडिया’ जो 1988 में प्रकाशित हुईउसमें मीडिया के प्रोपोगैंडा मॉडल’ की विशद् चर्चा की गई और इसकी कई दृष्टांतो के माध्यम से विवेचना की गयी ।
चॉम्स्की को प्राप्त अकादमिक उपलब्धियॉंसम्मान एंव पुरस्कार
1. 1969 
में जॉन लाक संभाषणआक्सफोर्ड विश्वविद्यालय।
2. 1970 
में वर्टेड रसेल स्मारक संभाषणकैम्ब्रिज विश्वविद्यालय।
3. 1972 
नेहरू स्मारक व्याख्याननई दिल्ली।
4. 1977 
हुइजिंग संभाषणलेदेन।
5. 1997 
अकादमिक स्वतंता पर देइप स्मारक व्याख्यानकेपटाउन।
नोम चॉम्स्की को विश्व के निम्नलिखित विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियां भी प्राप्त हैं 
1. 
लंदन विश्वविद्यालय।
2. 
शिकागो विश्वविद्यालय।
3. 
कोलकाता विश्वविद्यालय।
4. 
दिल्ली विश्वविद्यालय।
5. 
मसाचुएट्स विश्वविद्यालय।
पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय।
टोरंटो विश्वविद्यालय।
एथेंस विश्वविद्यालय।

ज्ञान बनाम आनुवंशिकता
चॉम्स्की के सिद्धांत का पहला प्रस्ताव होने के 50 सालों मेंभाषा की उत्पत्ति के बारे में बहस सहज क्षमताओं पर जोर देने और सीखने की भूमिका के बारे में अधिक जागरूकता की ओर बढ़ गई है। भाषा अधिग्रहण अब एक प्रक्रिया के रूप में माना जाता है जो बाइनरी विकल्पों की तुलना में अधिक जटिल हैइस प्रक्रिया में अधिक संज्ञान या सोच की आवश्यकता होती है।


संदर्भ-
https://hi.simpleaslife.com/13464-chomsky-s-theory-on-children-s-language-development.html

http://www.wikiwand.com/hi/


बुधवार, 28 नवंबर 2018

अरस्तु एक परिचय


एक महान दार्शनिक और वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति थे जिनके विचार आज भी प्रासंगिक है। अरस्तु हर शास्त्र में पारंगत थे चाहे वो राजनीतिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र हो। हर क्षेत्र के उनके विचार आज भी शिक्षा के रूप में पढ़ाये जाते है। वैज्ञानिक विचारधारा का जनक अरस्तु को ही माना जाता है। अरस्तु को बुद्धिमानो का गुरु भी कहा गया है।Aristotle का जन्म 384 ईसवी पूर्व ग्रीक यूनान में स्टिगिरा नामक स्थान पर हुआ था। अरस्तु के पिता मकदूनिया राज्य के शाही वेध थे। अरस्तु के गुरु फ्लूटो थे जो भी एक महान और प्रसिद्ध दार्शनिक थे और एन्थेन्स में प्लूटो की अकादमी भी थी वही पर अरस्तु ने करीब 20 साल तक शिक्षा ग्रहण की थी। प्लूटो अरस्तु से काफी प्रभावित थे और वो अरस्तु को अकेडमी का मस्तिष्क भी कहते थे।346 ईसवी पूर्व में अरस्तु मकदूनिया के राजा सिकन्दर महान के शिक्षक भी नियुक्त थे। सिकंदर अरस्तु को काफी मानता और सम्मान देता था। अरस्तु ने एक निजी विद्यालय लिसियम की स्थापना भी की थी। सिकंदर की मृत्यु के बाद अरस्तु केलियीस नगर चला गया।
अरस्तु ने अपने जीवनकाल में करीब 400 गर्न्थो की रचना की थी। अरस्तु ने पॉलिटिक्स ग्रन्थ की भी रचना की थी जिसमे तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था का यथार्थ चित्रण है। अरस्तु ने अपने इस ग्रन्थ में एक महत्वपूर्ण विचार रखा था की राज्य का निर्माण व्यक्ति समूह ने जानबूझकर या सोचविचार नही किया है। राज्य तो एक प्राकृतिक संस्था है। राज्य मनुष्य से पहले है। वही संविधान सबसे अच्छा है जो अधिक स्थायी होता है
अरस्तु किसी भी बात को बिना सोचे और विचारे नही मानते थे। वो घटना को मानने से पहले विचार करते थे।
मानव स्वभाव से जुड़े विचारों पर वह शोध करना पसंद करते थे। मानव विचारों में जैसे आदमी को जब भी समस्या आती है वो किस तरह से इसका सामना करता है और आदमी का दिमाग कैसे कार्य करता है अरस्तु अक्सर टहलते हुए ही प्रवचन देते थे।

संचार मॉडल: अरस्तू का सिद्धांत

संचार की प्रक्रिया का अध्ययन एक विज्ञान है। यह प्रक्रिया जटिल है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न तरीके से इस प्रक्रिया का वर्णन किया है। संचार की प्रक्रिया को बताने वाला चित्र मॉडल कहलाता है। इन मॉडलों से हमें संचार की गतिशील और सक्रिय प्रक्रिया समझने में आसानी होती है। ये संचार के सिद्धांत और इसके तत्वों के बारे में भी बताते हैं। संचार मॉडल से हमें पता चलता है कि संचार में किन-किन तत्वों की क्या भूमिका है और ये एक दूसरे का कैसे प्रभावित करते हैं?
संचार की शुरुआत लाखों साल पहले जीव की उत्पत्ति के साथ मानी जाती है। संचार की प्रक्रिया और इससे जुड़े कई सिद्धांत की जानकारी हमें प्राचीन ग्रथों से मिलती है। लेकिन उन जानकारियों पर और अध्ययन की आवश्‍यकता है। अरस्तू की व्याख्या के आधार पर कुछ विद्वानों ने संचार के सबसे पुराने मॉडल को बनाने की कोशिश की है। आप उसके बारे में जानते हैं?
करीब 2300 साल पहले ग्रीस के दार्शनिक अरस्तू ने अपनी किताब रेटॉरिकमें संचार की प्रक्रिया के बारे में बताया है। रेटॉरिक का हिन्दी में अर्थ होता है भाषण देने की कला। अरस्तू ने संचार की प्रक्रिया को बताते हुए पॉंच प्रमुख तत्वों की व्याख्या की है। संचार प्रेषक (भेजने वाला), संदेश (भाषण), प्राप्तकर्त्ता, प्रभाव और विभिन्न अवसर।
अरस्तू के विश्‍लेशण को निम्नलिखित चित्र या मॉडल के द्वारा समझा जा सकता है।

अरस्तू के अनुसार संचार की प्रक्रिया रेखीय है। रेखीय का अर्थ है एक सीधी लाईन में चलना। प्रेशक श्रोता को संदेश भेजता है जिससे उस पर एक प्रभाव उत्पन्न होता है। हर अवसर के लिए संदेश अलग-अलग होते हैं।
अरस्तू के अनुसार संचार का मुख्य उद्देष्य है श्रोता पर प्रभाव उत्पन्न करना। इसके लिए प्रेषक विभिन्न अवसरों के अनुसार अपने संदेश बनाता है और उन्हें श्रोता तक पहुंचाता है जिससे कि उनपर प्रभाव डाला जा सके। विभिन्न अवसरों पर संदेश कैसे तैयार किये जाये? इसका विश्लेषण भी अरस्तू करते हैं। संदेश तैयार करने के लिए वे तीन प्रमुख घटकों की चर्चा करते हैं, पैथोस्, इथोस् और लोगोस्।

पैथोस् का शाब्दिक अर्थ है दुःख। अरस्तु के अनुसार यदि संदेश इस तरह से तैयार किये जायें, जिससे कि श्रोता के मन में दुःख या इससे संबधित भाव उत्पन्न हो सके तो श्रोता के मस्तिष्क पर प्रभाव डाला जा सकता है। आसान शब्दों में कहें तो अपनी बात मनवाई जा सकती है। इसे समझने के लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ। मान लीजिए कि आपका छोटा भाई आपके साथ बाजार जाने की जिद करता है, लेकिन आप उसे नहीं ले जाना चाहते हैं। लेकिन, जब वो जोर-जोर से रोने बिलखने लगता है तो आप मजबूर होकर तैयार हो जाते हैं। इस प्रकरण का विश्लेषण करके देखिए। बच्चे ने संचार की शुरुआत की और अपने संदेश को उसने दुःख से इस तरह भर दिया कि श्रोता उसकी बात मानने को मजबूर हो गया। अर्थात प्रेषक ने अवसर के अनुरूप अपने संदेश का निर्माण किया। जिससे कि श्रोता पर इच्छित प्रभाव उत्पन्न हो सके।
मैंने पहले कहा था कि रेटॉरिक का अर्थ होता है भाषण देने की कला। यह मुख्य रूप से प्राचीन काल में राजनेताओं को सिखाई जाती थी, आज भी कई कुशल राजनेता ऐसे हैं जो अरस्तू की व्याख्या को अपने भाषण में आत्मसात करते हैं। तो क्या आप के दिग्गज नेता आशुतोष ने भी गजेन्द्र हत्याकान्ड मामले में अरस्तू के संदेशों से सीख ली थी? आपको याद होगा कि वे दहाड़े मारकर रोने लगे थे।
इथॉस्का शाब्दिक अर्थ है विश्वशनीयता। विश्वशनीयता को लंबे समय में हासिल किया जा सकता है। इसके लिए प्रेषक को अपने आचार-व्यवहार में इस तरह के परिवर्तन लाने होते हैं जिससे कि सामान्य जन का विश्वास उस पर मजबूत हो सके। जब लोगों का विश्वास उस पर होगा तो वो जो भी संदेश देगा उसका प्रभाव श्रोता पर अनुकूल पड़ेगा। इसे समझने के लिए शेक्सपियर के नाटक जूलियस सीजर को याद करिये। सीजर की हत्या हो गयी है। मार्क अंटोनी दिवंगत आत्मा की शांति के लिए अपना भाषण देता है। उस प्रसिद्ध भाषण के बाद विद्रोह हो जाता है। अंटोनी पर लोगों का विश्‍वास है क्योंकि उसकी छवि भरोसेमंद है। अंटोनी के इस प्रसिद्ध भाषण में अरस्तू के बताये तीनों तत्व पैथॉस्, इथॉस् और लोगॉस् का बखूबी प्रयोग किया है। इसी तरह महाभारत में युधिष्ठिर पर इतना विश्‍वास है कि उसके कहे झूठ पर विश्‍वास करके उसके गुरू द्रोणाचार्य अपना हथियार जमीन पर रख देतें हैं, और उनकी हत्या हो जाती है। यह भी इथॉस् का ही एक उदाहरण है।
लोगॉस् का शाब्दिक अर्थ है तर्क। अरस्तू कहते हैं कि प्रेषक का संदेश तर्क से भरपूर होना चाहिए। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि प्रेशक को अपनी बात तार्किक तरीके से रखनी चाहिए जिससे कि श्रोता पर प्रभाव पड़े। जूलियस सीजर नाटक में अंटोनी के भाषण में संदेश बड़े तार्किक तरीके से रखे गये हैं। इसे एक और उदाहरण से समझिए। न्यायालय में वकील मुकदमें की पैरवी करता है। इस दौरान वो प्रेषक है जबकि न्यायाधीश महोदय श्रोता। वकील को अपने संदेश या बातों से जज को प्रभावित करना है। इसके लिए वो तर्क का सहारा लेता है और घटना का तार्किक विश्‍लेषण न्यायाधीश के सामने रखता है। यदि संदेश तर्कपूर्ण है तो इसका प्रभाव पड़ता है और वकील साहब न्यायाधीश महोदय से अपने पक्ष में फैसला ले लेते हैं।
 संदर्भ- 
http://www.newswriters.in/2015/06/07/model-of-communication/
http://hindirang.com/biography/arastu/

https://hi.wikipedia.org/wiki