भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश आंदोलित है और जन लोकपाल को लेकर उत्साहित लेकिन, कांग्रेस इस पूरे मामले को किनारे लगा देना चाह रही है।कांग्रेस इस अभियान पर ध्यान न देकर उल्टे अन्ना हजारे की टीम पर हमले में जुटी है ताकि लोगों का ध्यान मूल विषय से हटाया जा सके। भ्रष्टाचार को लेकर पूरे देश में माहौल कांग्रेस के खिलाफ है और कांग्रेस उन्हीं लोगों को लक्ष्य कर रही है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं। कांग्रेस भ्रष्टाचार की गंगोत्री है और अपने शुरूआती दौर में ही यह पार्टी इसके लिए खासी बदनाम हो चुकी थी।1937 में विभिन्न राज्यों की कांग्रेस सरकारों के भ्रष्टाचार के इतने किस्से सामने आये कि महात्मा गांधी को दुखी होकर पार्टी को दफनाने तक की बात कह देनी पड़ी। कश्मीर युद्ध के समय जीप घोटाला हुआ। सेकेण्ड हैंड जीप खरीदी गयी और वे सब बेकार निकलीं।
लोकपाल का सुझाव पहली सरकार के वित्तमंत्री सीडी देशमुख ने दिया और डा. राजेन्द्र प्रसाद ने उसका समर्थन किया। तब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे गलत अर्थ में ले लिया था। इसे उन्होंने अपने खिलाफ अभियान मान लिया। नेहरू ने लोकपाल को मंत्रियों का हौसला तोड़ने वाला बताया। उस समय लोकपाल का गठन हो गया होता तो देश की वह तस्वीर न होती जो आज है।
बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, खासकर, पत्रकारिता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रही है। यह चिंता का विषय है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। विचार पंचायत इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
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