भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण वैश्विक स्तर पर अलग पहचान रखता है, प्राकृतिक आपदा और वैश्विक आपदाओं के समय भी
अपनी संस्कृति के अनुरूप देश ने संयम और धैर्य का परिचय दिया है. कोरोना वैश्विक
महामारी के समय भी भारतीय लोगों ने अपने साहस और दृढ़ता के बदौलत इस महामारी से लड़
रहे हैं और अनगिनत लोगों ने इस बीमारी से
निज़ात भी पा लिया है . इसको देखते
हुए कहा जा सकता है कि भारतीय में किसी भी तरह की संघर्ष क्षमता औरों से ज्यादा
है. हमें गर्व होना चाहिए कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है, वो अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो हमारा अनुसरण कर रहा है. हमें भी भारतीय
संस्कृति के महत्व को, उनकी बारीकियों को और अच्छे से समझने की आवश्यकता है.
भारत में जिस प्रकार इस महामारी से बचने के लिए लोगों ने कार्य किया है वह
अत्यंत प्रशंसनीय है और इसमें हमारे भारतीय संस्कृति और संस्कार की महत्त्वपूर्ण
भूमिका है. अपनी संस्कृति के अनुरूप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के एक आवाहृन
पर लोगों ने अपनी परवाह न करते हुए भोजन, पानी की व्यवस्था की. पुलिसिंग व्यवस्था का एक नया चेहरा सामने आया जो गरीबों
और बेसहारा लोगों का सहारा बने. देश के
डाक्टर, हमारी नर्से, सफाई कर्मचारी सभी ने इस प्रकार अपना दायित्व
निभाया कि हमको एक दिन उनके सम्मान में तालियां बजानी पड़ी. कहा जाता है कि युवा
वर्ग जो पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित है उसने इस समय अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय
दिया. मोबाइल और इंटरनेट का प्रयोग करके अपने माता-पिता और सभी को आपस में जोड़
दिया. इस समय को बेहतर बनाने के लिए नये नये ऐप खोजेऔर कई नये अविष्कार भी किये.
हमारे देश के बच्चों ने भी इस समय को बड़ी समझदारी से निकाला ना ही कोई जिद,ना बाजार का खाना केवल मां के हाथ का खाना और घर
के अंदर ही खेलकर, पेंटिंग बनाकर सबको
खुश किया. यह सभी तरीके कहीं न कहीं कोरोना के रोकथाम में मदद पहुंचा गया और आज भी
पहुंचा रहा है.
देश के प्रधानमंत्री ने पहले से ही जो स्वच्छता,का मंत्र दिया वह इस समय बहुत काम आया. वसुधैव
कुटुंबकम् की भावना से भारत ने अन्य देशों को भी दवाईयां दी. जो कई देशों के लिए
अमृत के समान कार्य किया. हमारे देश की
महिलाओं ने भी इस समय बहुत ही धैर्य से अपने घर, परिवार का ध्यान रखा और बाजार के खाने को घर में
ही बनाया और सबको खुश रखा. समय की गति बहुत तीव्र है आने वाला समय अच्छा होगा इसी
कामना से हम भारतीय अपनी संस्कृति के साथ आगे बढ़ रहें हैं निश्चित ही विजय हमारी
ही होगी. भारतीय संस्कृति की पहचान- योगमयी जीवन की तरफ लौटना हमारे जीवन को आगे
आने वाले दिनों में खुशहाल तथा संतुलित बना देगा. राम और कृष्ण की धरती पुन:
गौरवान्वित होकर जयघोष करने लगेगी.
भारतीय जीवन शैली भविष्य के जरूरतों के हिसाब से है, इसका प्रमाण कई विपरीत परस्थितियों में देखा और
समझा जा सकता है. विख्यात समाजवादी सुरेश हिन्दुस्तानी कहते है कि ‘हम जाहिल, दकियानूसी, गंवार नहीं. हम
सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं. आज
हमें गर्व होना चाहिए कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है, वो अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो हमारा अनुसरण कर रहा है. हमें भी भारतीय
संस्कृति के महत्व को, उनकी बारीकियों को और अच्छे से समझने की आवश्यकता है क्योंकि यही जीवन शैली
सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सबसे
उन्नत है, गर्व से कहिये हम
सबसे श्रेष्ठ हैं.’
किसी भी तरह के संक्रमण से बचाव के संभावित उपाय हमारे देश की प्राचीन
संस्कृति एवं जीवन शैली के अभिन्न अंग रहे हैं. प्राचीन ग्रंथों में नियमित जीवन
शैली तथा स्वस्थ दिनचर्या का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. हालांकि इस स्वस्थ
जीवन शैली के जन जन तक प्रसार के लिए धार्मिक, सामाजिक एवं परंपरागत उपायों का सहारा लिया गया.
संभवतः प्रामाणिक वैज्ञानिक आधार न होने के कारण और इनके मूलभूत आधार से विकृत
होती इन प्रथाओं और साथ ही साथ चकाचौंध करती पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हो कर
धीरे धीरे हम इन स्वस्थ और उपयोगी परम्पराओं से विमुख होते चले गए. भारतीय समृद्ध
परम्परा को बचाने के लिए कई स्तर पर प्रयास करने की जरुरत है. हालंकि इस दिशा में
वर्तमान सरकार कार्य भी कर रही है.
सैकड़ों वर्षों की हमारी गुलामी के कालखंडों के परिणामस्वरूप हम कई बार अपनी
संस्कृति तथा परम्परा को अस्वीकार करते रहे हैं. यदि विश्व के अन्य देश तथ्यात्मक
शोध के आधार पर हमारी परम्परा, संस्कृति को सही ठहराते हैं तब हम तुरंत उसको सही मान लेते हैं. आज हमारी युवा
पीढ़ी को संकल्पित होने, भारतवर्ष के प्राचीन पारम्परिक ज्ञान की परम्पराओं को वैज्ञानिक भाषा में
संपूर्ण विश्व को समझाने पर जोर देना होगा. हमें अपनी संस्कृति और परम्परा की
शक्ति पर विश्वास करना होगा.
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