बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, खासकर, पत्रकारिता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रही है। यह चिंता का विषय है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। विचार पंचायत इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
सोमवार, 22 मार्च 2010
पत्रकारिता में चाटुकारिता .
पत्रकारिता में चाटुकारिता आज कल खूब हो रहा है । इसके पीछे कारन यह है की संपादको का नौसिखुआ होना । संपादक वही लोग हो रहे है जो पैसा लगा रहे है या राज नेताओ से अच्छे सम्बन्ध है । मैं केवल प्रिंट मीडिया की बात नहीं कर रहा हूँ मैं इलेक्ट्रोनिक या वेब मीडिया , सभी माध्यमो की बात कर रहा हूँ । आज कल पत्रकार .संपादक के चाटुकारिता पर ज्यादा धन दे रहे है । आपने काम पर कम । इसके पीछे कारन यह है की । उन्हें अपने काम का ज्ञान नहीं होना । प्रिंट मीडिया के लिए लिखते तो है । पर उन्हें रचना प्रक्रिया का क , ख , ग का पता नहीं है । तो क्यों नहीं चाटुकारिता करे । नौकरी जो करनी है , पर अगर अगर अच्छे पत्रकार हमारे समाज को चाहिए तो । चाटुकारिता पर लगाम कसना होगा । और संपादक उन्हें ही बनाया जाये जिन्हें पत्रकारिता का ज्ञान हो । और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो .
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1 टिप्पणी:
शिवेन्दु जी में आपकी बात और इशारा दोनों समझ रहा हूँ |
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