भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक की शादी को लेकर मचे बवाल ने सरहद पार होने वाली शादियों की सफलता पर फिर बहस छेड़ दी है।
अमूमन दो देशों के लोगों के बीच हुई शादियां समस्याओं से घिरी रहती हैं और अगर बात भारत-पाकिस्तान की आती है तो उसमें जटिलताओं की आशंका और बढ़ जाती है। सरहद पार रिश्तों में अक्सर लड़कियों को ही समझौते करने पड़ते हैं।भले ही समाज बदल गया है, लेकिन अगर बात शादी की आती है तो कहीं न कहीं सामाजिक दायरे अब भी आड़े आते हैं। दो देशों के बीच शादियों में बाद में कई जमीनी समस्याएं आती हैं।पहले भी कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच की शादियां सुर्खियों में आई हैं, लेकिन हर बार वह समस्याओं के कारण ही आयी हैं। दोनों देशों के माहौल और समाज के नजरिए में जमीन-आसमान का अंतर है। ऐसे में भारत की लड़कियों और खास तौर पर सानिया मिर्जा जैसी खिलाड़ी को पाकिस्तान के कथित रूढ़िवादी माहौल में सामंजस्य बिठाने में खासी तकलीफ आ सकती है।
बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, खासकर, पत्रकारिता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रही है। यह चिंता का विषय है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। विचार पंचायत इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
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