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रविवार, 4 दिसंबर 2011
‘तू तो ना आए, तेरी याद सताए’
ताउम्र जिंदगी का जश्न मनाने वाले ‘सदाबहार’ अभिनेता देव आनंद सही मायने में एक अभिनेता थे, जिन्होंने अंतिम सांस तक अपने कर्म से मुंह नहीं फेरा।हिन्दी फिल्मों के सदाबहार अभिनेता देव आनंद के निधन से बॉलीवुड में ही नहीं पुरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। देव साहब की तस्वीर आज भी लोगों के जेहन में एक ऐसे शख्स की है, जिसका पैमाना न केवल जिंदगी की रूमानियत से लबरेज था, बल्कि जिसकी मौजूदगी आसपास के माहौल को भी नई ताजगी से भर देती थी।
इस करिश्माई कलाकार ने ‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया...’ के दर्शन के साथ जिंदगी को जिया। यह उनकी 1961 में आई फिल्म ‘हम दोनों’ का एक सदाबहार गीत है और इसी को उन्होंने जीवन में लफ्ज-दर-लफ्ज उतार लिया था।
देव साहब ने शनिवार रात लंदन में दुनिया को गुडबॉय कह दिया। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। वैसे तो वह जिंदगी के 88 पड़ाव पार कर चुके थे, लेकिन वह नाम जिसे देव आनंद कहा जाता है, उसका जिक्र आने पर अभी भी नजरों के सामने एक 20-25 साल के छैल-छबीले नौजवान की शरारती मुस्कान वाली तस्वीर तैर जाती है, जिसकी आंखों में पूरी कायनात के लिए मुहब्बत का सुरूर है।
देव साहब के अभिनय और जिंदादिली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब राज कपूर और दिलीप कुमार जैसे कलाकारों ने फिल्मों में नायक की भूमिकाएं करना छोड़ दिया था, उस समय भी देव आनंद के दिल में रूमानियत का तूफान हिलोरें ले रहा था और अपने से कहीं छोटी उम्र की नायिकाओं पर अपनी लहराती जुल्फों और हॉलीवुड अभिनेता ग्रेगोरी पैक मार्का इठलाती टेढ़ी चाल से वह भारी पड़ते रहे। ‘जिद्दी’ से शुरू होकर देव साहब का फिल्मी सफर, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘देस परदेस’, ‘हरे रामा हरे कृष्ण’ जैसी फिल्मों से होते हुए एक लंबे दौर से गुजरा और अपने अंतिम सांस तक वह काम करते रहे।
उनकी नई फिल्म ‘चार्जशीट’ रिलीज होने के लिए तैयार है और वह अपनी फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की अगली कड़ी पर भी काम कर रहे थे। लेकिन इस नई परियोजना पर काम करने के लिए देव साहब नहीं रहे। बीते सितंबर में अपने 88वें जन्मदिन पर उन्होंने पीटीआई को दिए अंतिम साक्षात्कार में कहा था, ‘मेरी जिंदगी में कुछ नहीं बदला है और 88वें साल में मैं अपनी जिंदगी के खूबसूरत पड़ाव पर हूं। मैं उसी तरह उत्साहित हूं, जिस तरह 20 साल की उम्र में होता था। मेरे पास करने के लिए बहुत काम है और मुझे ‘चार्जशीट’ के रिलीज होने का इंतजार है।’
मैं दर्शकों की मांग के अनुसार, ‘हरे रामा हरे कृष्णा आज’ की पटकथा पर काम कर रहा हूं। देव साहब की फिल्में न केवल उनकी आधुनिक संवेदनशीलता को बयां करती थीं, बल्कि साथ ही भविष्य की एक नई इबारत भी पेश करती थीं।
वह हमेशा कहते थे कि उनकी फिल्में उनके दुनियावी नजरिए को पेश करती हैं और इसीलिए सामाजिक रूप से प्रासंगिक मुद्दों पर ही आकर बात टिकती है। उनकी फिल्मों के शीर्षक ‘अव्वल नंबर’, ‘सौ करोड़’, ‘सेंसर’, ‘मिस्टर प्राइम मिनिस्टर’ तथा ‘चार्जशीट’ इसी बात का उदाहरण है।
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1 टिप्पणी:
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