वेब पत्रकारिता
वेब पत्रकारिता, प्रकाशन और प्रसारण की भाषा में आधारभूत अंतर है। प्रसारण व वेब-पत्रकारिता की भाषा में कुछ समानताएं हैं। रेडियो/ टीवी प्रसारणों में भी साहित्यिक भाषा,जटिल व लंबे शब्दों से बचा जाता है। आप किसी प्रसारण में, 'हेतु, प्रकाशनाधीन, प्रकाशनार्थ,किंचित, कदापि, यथोचित इत्यादि' जैसे शब्दों का उपयोग नहीं पाएँगे। कारण? प्रसारण ऐसे शब्दों से बचने का प्रयास करते हैं जो उच्चारण की दृष्टि से असहज हों या जन-साधारण की समझ में न आएं। ठीक वैसे ही वेब-पत्रिकारिता की भाषा भी सहज-सरल होती है।
वेब पत्रकारिता, प्रकाशन और प्रसारण की भाषा में आधारभूत अंतर है। प्रसारण व वेब-पत्रकारिता की भाषा में कुछ समानताएं हैं। रेडियो/ टीवी प्रसारणों में भी साहित्यिक भाषा,जटिल व लंबे शब्दों से बचा जाता है। आप किसी प्रसारण में, 'हेतु, प्रकाशनाधीन, प्रकाशनार्थ,किंचित, कदापि, यथोचित इत्यादि' जैसे शब्दों का उपयोग नहीं पाएँगे। कारण? प्रसारण ऐसे शब्दों से बचने का प्रयास करते हैं जो उच्चारण की दृष्टि से असहज हों या जन-साधारण की समझ में न आएं। ठीक वैसे ही वेब-पत्रिकारिता की भाषा भी सहज-सरल होती है।
वेब का हिंदी पाठक-वर्ग आरंभिक दौर में
अधिकतर ऐसे लोग थे जो वेब पर अपनी भाषा पढ़ना चाहते थे, कुछ ऐसे लोग थे
जो विदेशों में बसे हुए थे किंतु अपनी भाषा से जुड़े रहना चाहते थे या कुछ ऐसे लोग
जिन्हें किंहीं कारणों से हिंदी सामग्री उपलब्ध नहीं थी जिसके कारण वे किसी भी तरह
की हिंदी सामग्री पढ़ने के लिए तैयार थे। आज परिस्थितिएं बदल गई हैं मुख्यधारा
वाला मीडिया ऑनलाइन उपलब्ध है और पाठक के पास सामग्री चयनित करने का विकल्प है।
इंटरनेट का पाठक अधिकतर जल्दी में होता
है और उसे बांधे रखने के लिए आपकी सामग्री पठनीय, रूचिकर व आकर्षक हो यह बहुत आवश्यक है।
यदि हम ऑनलाइन समाचार-पत्र की बात करें तो भाषा सरल, छोटे वाक्य व पैराग्राफ भी अधिक लंबे
नहीं होने चाहिए।
विशुद्ध साहित्यिक रुचि रखने वाले लोग भी अब वेब पाठक हैं और वे वेब पर लंबी कहानियां व साहित्य पढ़ते हैं। उनकी सुविधा को देखते हुए भविष्य में साहित्य डॉउनलोड करने का प्रावधान अधिक उपयोग किया जाएगा ऐसी प्रबल संभावना है। साहित्य की वेबसाइटें स्तरीय साहित्य का प्रकाशन कर रही हैं और वे निःसंदेह साहित्यिक भाषा का उपयोग कर रही हैं लेकिन उनके पास ऐसा पाठक वर्ग तैयार हो चुका है जो साहित्यिक भाषा को वरियता देता है।
विशुद्ध साहित्यिक रुचि रखने वाले लोग भी अब वेब पाठक हैं और वे वेब पर लंबी कहानियां व साहित्य पढ़ते हैं। उनकी सुविधा को देखते हुए भविष्य में साहित्य डॉउनलोड करने का प्रावधान अधिक उपयोग किया जाएगा ऐसी प्रबल संभावना है। साहित्य की वेबसाइटें स्तरीय साहित्य का प्रकाशन कर रही हैं और वे निःसंदेह साहित्यिक भाषा का उपयोग कर रही हैं लेकिन उनके पास ऐसा पाठक वर्ग तैयार हो चुका है जो साहित्यिक भाषा को वरियता देता है।
सामान्य वेबसाइट के पाठक जटिल शब्दों के
प्रयोग व साहित्यिक भाषा
से दूर भागते हैं, वे आम बोल-चाल की भाषा अधिक पसंद करते हैं
अन्यथा वे एक-आध मिनट ही साइट पर रूककर साइट से बाहर चले जाते हैं।
सामान्य पाठक-वर्ग को बाँधे रखने के लिए आवश्यक है कि साइट का रूप-रंग आकर्षक हो,छायाचित्र व ग्राफ्किस अर्थपूर्ण हों, वाक्य और पैराग्राफ़ छोटे हों, भाषा सहज व सरल हो। भाषा खीचड़ी न हो लेकिन यदि उर्दू या अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का उपयोग करना पड़े तो इसमें कोई बुरी बात न होगी। भाषा सहज होनी चाहिए शब्दों का ठूंसा जाना किसी भी लेखन को अप्रिय बना देता है।
सामान्य पाठक-वर्ग को बाँधे रखने के लिए आवश्यक है कि साइट का रूप-रंग आकर्षक हो,छायाचित्र व ग्राफ्किस अर्थपूर्ण हों, वाक्य और पैराग्राफ़ छोटे हों, भाषा सहज व सरल हो। भाषा खीचड़ी न हो लेकिन यदि उर्दू या अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का उपयोग करना पड़े तो इसमें कोई बुरी बात न होगी। भाषा सहज होनी चाहिए शब्दों का ठूंसा जाना किसी भी लेखन को अप्रिय बना देता है।
इंटरनेट के प्रचार-प्रसार और निरंतर
तकनीकी विकास ने एक ऐसी वेब मीडिया को जन्म दिया, जहाँ अभिव्यक्ति के पाठ्य, दृश्य, श्रव्य एवं
दृश्य-श्रव्य सभी रूपों का एक साथ क्षणमात्र में प्रसारण संभव हुआ। यह वेब मीडिया
ही ‘न्यू मीडिया’ है, जो एक कंपोजिट
मीडिया है, जहाँ संपूर्ण
और तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहाँ एक शीर्षक
अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्तियों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी
अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस
अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह साथ-साथ देख पाना भी
संभव है। इतना ही नहीं, यह मीडिया
लोकतंत्र में नागरिकों के वोट के अधिकार के समान ही हरेक व्यक्ति की भागीदारी के
लिए हर क्षण उपलब्ध और खुली हुई है।
इंटरनेट पत्रकारिता के उपकरण-
वेब पत्रकारिता प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यम की पत्रकारिता से भिन्न है । वेब पत्रकारिता के लिए लेखन की समस्त दक्षता के साथ-साथ कंप्यूटर और इंटरनेट की बुनियादी ज्ञान के अलावा कुछ आवश्यक सॉफ्टवेयरों के संचालन में प्रवीणता भी आवश्यक है जैसेः-
1। प्रिंटिग एवं पब्लिशिंग टूल्स - पेजमेकर, क्वार्क एक्सप्रेस, एमएमऑफिस आदि ।
2। ग्राफिक टूल्स - कोरल ड्रा, एनिमेशन, फ्लैश, एडोब फोटोशॉप आदि ।
3। सामग्री प्रबंधन टूल्स – एचटीएमएल, फ्रंटपेज, ड्रीमवीवर, जूमला, द्रुपल, लेन्या, मेम्बू,प्लोन, सिल्वा, स्लेस, ब्लॉग, पोडकॉस्ट, यू ट्यूब आदि।
4। मल्टीमीडिया टूल्स- विंडो मीडिया प्लेयर, रियल प्लेयर, आदि ।
5। अन्य टूल्स- ई-मेलिंग, सर्च इंजन, आरएसएस फीड, विकि टेकनीक, मैसेन्जर, विडियो कांफ्रेसिंग, चेंटिंग, डिस्कशन फोरम ।
वेब पत्रकारिता में सामग्री
भारत के इंटरनेट समाचार पत्र मुख्यतः अपने मुद्रित संस्करणों की सामग्री यथा लिखित सामग्री और फोटो ही उपयोग लाते हैं।
ऑनलाइन समाचार पत्रों का ले आउट मुद्रित संस्करणों की तरह नहीं होता है, मुद्रित संस्करणों की सामग्री 8 कॉलमों में होती हैं । ऑनलाइन पत्र की सामग्री कई रूपो में होती हैं । इसमें एक मुख्य पृष्ठ होता है जो कंप्यूटर के मॉनीटर में प्रदर्शित होता है जहाँ विविध खंडों में सामग्री के मुख्य शीर्षक हुआ करते हैं । इसके अलावा प्रमुख समाचारों और मुख्य विज्ञापनों को भी मुख्य पृष्ठ में रखा जाता है जिन्हें क्लिक करने पर उस समाचार, फोटो, फीचर, ध्वनि या दृश्य का लिंक किया हुआ पृष्ठ खुलता है और तब पाठक उसे विस्तृत रूप में पढ़, देख या सुन सकता है। समाचार सामग्री को वर्गीकृत करने वाले मुख्य शीर्षकों का समूह अधिकांशतः हर पृष्ठों में हुआ करते हैं । ये शीर्षक समाचारों के स्थान, प्रकृति इत्यादि के आधार पर हुआ करते हैं जैसे विश्व,देश, क्षेत्रीय, शहर अथवा राजनीति, समाज, खेल, स्वास्थ्य, मनोरंजन, लोकरूचि, प्रौद्योगिकी आदि। ये सभी अन्य पृष्ठ या वेबसाइट से लिंक्ड रहते हैं। इस तरह से एक पाठक केवल अपनी इच्छानुसार ही संबंधित सामग्री का उपयोग कर सकता है। पाठक एक ई-मेल या संबंधित साइट में ही उपलब्ध प्रतिक्रिया देने की तकनीकी सुविधा का उपयोग कर सकता है। वांछित विज्ञापन के बारे में विस्तृत जानकारी भी पाठक उसी समय जान सकता है जबकि एक मुद्रित संस्करण में यह असंभव होता है। इस तरह से ऑनलाइन संस्करणों में ऑनलाइन शापिंग का भी रास्ता है। मुद्रित संस्करणों में पृष्ठों की संख्या नियत और सीमित हुआ करती है जबकि ऑनलाइन संस्करणों में लेखन सामग्री और ग्राफिक्स की सीमा नहीं होती है। ऑनलाइन पत्रों की एक विशेषता यह भी है कि उसके पाठकों की संख्या यानी रीडरशिप उसी क्षण जानी जा सकती है ।
वेब-पत्रकारिता का सामान्य वर्गीकरण
इंटरनेट अब दूरस्थ पाठकों के लिए समाचार प्राप्ति का सबसे प्रमुख माध्यम बन चुका है। वर्तमान समय में इंटरनेट आधारित पत्र-पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है । इसमें दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक,मासिक, त्रैमासिक सभी तरह की आवृत्तियों वाले समाचार पत्र और पत्रिकाएं शामिल हैं ।
विषय वस्तु की दृष्टि से इन्हें हम समाचार प्रधान, शैक्षिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि केंद्रित मान सकते हैं। यद्यपि इंटरनेट पर ऑनलाइन सुविधा के कारण स्थानीयता का कोई मतलब नहीं रहा है किन्तु समाचारों की महत्ता और प्रांसगिकता के आधार पर वर्गीकरण करें तो ऑनलाइन पत्रकारिता को भी हम स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर देख सकते हैं । जैसे नोएडा के ग्रेनो न्यूज डॉट कॉम को स्थानीय, दैनिक छत्तीसगढ़ डॉट कॉम को प्रादेशिक, नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को राष्ट्रीय और बीबीसी डॉट कॉम, डॉट काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन समाचार पत्र मान सकते हैं ।
ब जर्नलिज्म : नए जमाने के मीडिया को
ऐसे समझें
प्रिंट और ब्रॉडकास्ट के बाद अब जमाना न्यू मीडिया का है। जवानी की ओर बढ़ रहे इस मीडिया ने नौजवानों को अपनी ओर खूब खींचा है।
न्यू मीडिया यानी क्या
परिभाषा के लिहाज से देखें तो न्यू मीडिया में वेबसाइट, ऑडियो-वीडियो स्ट्रीमिंग, चैट रूम, ऑनलाइन कम्युनिटीज के साथ तकनीक-ऑडियो-वीडियो-ग्राफिक के मेल से तैयार कोई भी कंटेंट शामिल है। लेकिन पत्रकारों के लिए न्यू मीडिया का मतलब ब्लॉगिंग, सिटिजन या ट्रेडिशनल जर्नलिज्म, सोशल नेटवर्किंग और वायरल मार्केटिंग (कंटेंट की) तक सीमित माना जा सकता है।
परिभाषा के लिहाज से देखें तो न्यू मीडिया में वेबसाइट, ऑडियो-वीडियो स्ट्रीमिंग, चैट रूम, ऑनलाइन कम्युनिटीज के साथ तकनीक-ऑडियो-वीडियो-ग्राफिक के मेल से तैयार कोई भी कंटेंट शामिल है। लेकिन पत्रकारों के लिए न्यू मीडिया का मतलब ब्लॉगिंग, सिटिजन या ट्रेडिशनल जर्नलिज्म, सोशल नेटवर्किंग और वायरल मार्केटिंग (कंटेंट की) तक सीमित माना जा सकता है।
न्यू मीडिया की ताकत क्या
इंटरएक्टिविटी- आप रीडर तक खबर टेक्स्ट, साउंड, विजुअल, इंफोग्राफ किसी भी रूप में पहुंचा सकते हैं। यानी जिस भी आसान तरीके से रीडर उसे समझ सके। रीडर आपकी खबर पर फीडबैक भी दे सकता है। यानी दोतरफा संवाद, जो इस माध्यम की सबसे बड़ी ताकत है।
इंटरएक्टिविटी- आप रीडर तक खबर टेक्स्ट, साउंड, विजुअल, इंफोग्राफ किसी भी रूप में पहुंचा सकते हैं। यानी जिस भी आसान तरीके से रीडर उसे समझ सके। रीडर आपकी खबर पर फीडबैक भी दे सकता है। यानी दोतरफा संवाद, जो इस माध्यम की सबसे बड़ी ताकत है।
पोर्टेबिलिटी- डिजिटल डिवाइस के रूप में आसानी से साथ कैरी कर सकते हैं।
एवेलेविलिटी- कहीं भी, कभी भी उपलब्ध … और सबसे बड़ी ताकत
(शायद सबसे बड़ी कमजोरी भी) यही है कि इसमें खबरों का एजेंडा न्यूजरूम में बैठे संपादक या पत्रकार तय नहीं करते। यह अधिकार यूजर्स (रीडर्स) के पास चला गया है।
(शायद सबसे बड़ी कमजोरी भी) यही है कि इसमें खबरों का एजेंडा न्यूजरूम में बैठे संपादक या पत्रकार तय नहीं करते। यह अधिकार यूजर्स (रीडर्स) के पास चला गया है।
ये ताकत है तो वेब
जर्नलिस्ट क्या करे…
इंटरएक्टिविटी- इंटरएक्टिव मीडियम है, इसलिए आर्टिकल से ज्यादा अप्लीकेशन पर दिमाग लगाना होगा, ताकि रीडर एंगेज हो सके।
इंटरएक्टिविटी- इंटरएक्टिव मीडियम है, इसलिए आर्टिकल से ज्यादा अप्लीकेशन पर दिमाग लगाना होगा, ताकि रीडर एंगेज हो सके।
पोर्टेबिलिटी- न्यू मीडिया तक पहुंच का जरिया आसानी से कैरी करने लायक
डिवाइस हैं, इसलिए कंटेंट प्रेजेंटेशन में मोबाइल फोन
यूजर्स की सुविधा का ध्यान रखना होगा। यानी आप आर्टिकल प्रेजेंट करने के लिए जो
अप्लीकेशन यूज कर रहे हैं उसका रिफ्लेक्शन मोबाइल स्क्रीन पर आसानी से हो।
एवेलेविलिटी- कहीं भी, कभी भी उपलब्ध है तो रियल टाइम इंफॉर्मेशन
देनी होगी। घटना घटी नहीं कि तुरंत एक्शन में आना होगा और यूजर तक इसकी जानकारी
पहुंचानी होगी। यानी रियल टाइम प्लानिंग और डिस्ट्रीब्यूशन।
…और सबसे
बड़ी बात
खबरों का एजेंडा तय करना जब पत्रकारों के हाथ में नहीं रहा तो फिर उन्हें ज्यादा से ज्यादा खबरें अपनी न्यूज वेबसाइट पर देनी होंगी, ताकि रीडर्स के पास ज्यादा से ज्यादा च्वॉइस हो।
खबरों का एजेंडा तय करना जब पत्रकारों के हाथ में नहीं रहा तो फिर उन्हें ज्यादा से ज्यादा खबरें अपनी न्यूज वेबसाइट पर देनी होंगी, ताकि रीडर्स के पास ज्यादा से ज्यादा च्वॉइस हो।
कई बदलाव
न्यू मीडिया के चलते जर्नलिज्म में पॉजिटिव और निगेटिव, दोनों तरह के बदलाव आए हैं। पहले कुछ पॉजिटिव चेंज की बात-
न्यू मीडिया के चलते जर्नलिज्म में पॉजिटिव और निगेटिव, दोनों तरह के बदलाव आए हैं। पहले कुछ पॉजिटिव चेंज की बात-
पाठकों से संवाद- रीडर्स से तत्काल फीडबैक मिलता है और यह संवाद दोतरफा होता
है।
खबरों की परिभाषा बदली- पारंपरिक मीडिया की तरह खबरों की परिभाषा और सीमा बदल गई।
न्यू मीडिया में चूंकि रीडर अपनी पसंद से खबरें चुनता है, इसलिए प्रिंट या ट्रेडिशनल मीडिया की नजर में जो खबर नहीं
है, न्यू मीडिया के लिए वह भी अहम खबर हो सकती
है। न्यू मीडिया के पत्रकारों को अपने रीडर्स के लिए हर नेचर (यहां तक कि ह्यूमर
भी) की ज्यादा से ज्यादा खबरें देनी होती हैं।
जनमानस को प्रभावित करने या बरगलाने की ताकत नहीं-
ट्रेडिशनल मीडिया की साख ज्यादा है और सशक्त संवाद की सुविधा नहीं है, इसलिए वह जनमानस को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। पर न्यू
मीडिया में ऐसी कोई ताकत अभी तक विकसित नहीं हुई है।
ये निगेटिव चेंज भी आए…
गंभीरता की कमी, अफवाहों और गलत खबरों को बढ़ावा मिलने का खतरा, लेखकों/पत्रकारों में मर्यादा में रह कर लिखने की बाध्यता खत्म, खबरों को सनसनीखेज बनाने की प्रवृत्ति बढ़ी, निजता का हनन ज्यादा, पत्रकारों की पहचान का संकट, क्योंकि न्यू मीडिया के लिए हर कोई लिख सकता है…
गंभीरता की कमी, अफवाहों और गलत खबरों को बढ़ावा मिलने का खतरा, लेखकों/पत्रकारों में मर्यादा में रह कर लिखने की बाध्यता खत्म, खबरों को सनसनीखेज बनाने की प्रवृत्ति बढ़ी, निजता का हनन ज्यादा, पत्रकारों की पहचान का संकट, क्योंकि न्यू मीडिया के लिए हर कोई लिख सकता है…
वर्किंग
न्यू मीडिया के पत्रकारों का कामकाज मुख्यत: तीन चरणों में पूरा होता है
न्यू मीडिया के पत्रकारों का कामकाज मुख्यत: तीन चरणों में पूरा होता है
कंटेंट क्रिएशन – प्रेजेंटेशन – डिस्ट्रिब्यूशन
कंटेंट क्रिएशन
न्यू मीडिया की एक खास बात यह है कि यहां कंटेंट (या न्यूज) का एक अहम सोर्स यह मीडिया भी है। ट्विटर, रेड्डिट.कॉम जैसी सोशल वेबसाइटें तो ट्रेडिशनल मीडिया को भी आज न्यूज मुहैया करा रही हैं।
न्यू मीडिया की एक खास बात यह है कि यहां कंटेंट (या न्यूज) का एक अहम सोर्स यह मीडिया भी है। ट्विटर, रेड्डिट.कॉम जैसी सोशल वेबसाइटें तो ट्रेडिशनल मीडिया को भी आज न्यूज मुहैया करा रही हैं।
वेब के लिए कॉपी
न्यूज वेबसाइट के लिए लिखी जाने वाली कॉपी में इस बात का खास ध्यान रखना होता है कि वह रीडर को एंगेज कर सके। रियल टाइम मीडियम होने के कारण यह बड़ी चुनौती है कि कॉपी बिना किसी गलती के लिखी जाए। वेब के लिए कॉपी लिखते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए- वाक्य, पैराग्राफ और कॉपी छोटी हो। खबर का सार पहले सौ शब्दों में आ जाना चाहिए। जो लिख रहे हैं उसका संदर्भ पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए और स्पष्ट तरीके से लिखा गया होना चाहिए। हेडलाइन भ्रामक नहीं हो। यानी हेडलाइन में जो कह रहे हों, वह बात इंट्रो/कॉपी में जरूर होनी चाहिए।
न्यूज वेबसाइट के लिए लिखी जाने वाली कॉपी में इस बात का खास ध्यान रखना होता है कि वह रीडर को एंगेज कर सके। रियल टाइम मीडियम होने के कारण यह बड़ी चुनौती है कि कॉपी बिना किसी गलती के लिखी जाए। वेब के लिए कॉपी लिखते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए- वाक्य, पैराग्राफ और कॉपी छोटी हो। खबर का सार पहले सौ शब्दों में आ जाना चाहिए। जो लिख रहे हैं उसका संदर्भ पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए और स्पष्ट तरीके से लिखा गया होना चाहिए। हेडलाइन भ्रामक नहीं हो। यानी हेडलाइन में जो कह रहे हों, वह बात इंट्रो/कॉपी में जरूर होनी चाहिए।
हेडलाइन स्पष्ट हो और उसमें की-वर्ड्स (व्यक्ति, स्थान, पार्टी
आदि का नाम, जिसके जरिए लोग उससे संबंधित खबर इंटरनेट पर
सर्च करते हैं) का प्रयोग जरूर हो। जैसे- प्रधानमंत्री की जगह नरेंद्र मोदी लिखें, ‘चीन जाएंगे नरेंद्र मोदी, भारत से रिश्तों पर करेंगे बात।’
हेडलाइन स्पेसिफिक हो, जेनरलाइज्ड नहीं। उदाहरण- बॉलीवुड के खान सुपरस्टार्स से
मिले प्रधानमंत्री के बजाय यह हेडलाइन सटीक है कि सलमान, आमिर, शाहरुख
से मिले नरेंद्र मोदी। लाखों, करोड़ों
के बजाय 15 लाख या 50 करोड़ यानी सटीक नंबर का इस्तेमाल करें।
हेडलाइन में इनवर्टेड कौमा का इस्तेमाल नहीं करें।
विजुअल अपील के लिए स्टोरी से मैच करती तस्वीर लगाएं।
कंटेंट प्रेजेंटेशन
न्यूज वेबसाइट में कंटेंट का कम से कम समय में अच्छा से अच्छा प्रेजेंटेशन बड़ी चुनौती है और इसका रोल बेहद अहम है।
न्यूज वेबसाइट में कंटेंट का कम से कम समय में अच्छा से अच्छा प्रेजेंटेशन बड़ी चुनौती है और इसका रोल बेहद अहम है।
वेबसाइट पर अखबार की तरह लंबी कॉपी पढ़ना सुविधाजनक नहीं
होता। इसलिए बेहतर प्रेजेंटेशन के लिए पहले लेवल पर तो कॉपी लिखने का पारंपरिक स्टाइल
छोड़ना होता है।
सौ शब्दों के भीतर खबर का सार बता कर बाकी बातें सवाल-जवाब
के रूप में बता सकते हैं। सवाल वे होंगे जो उस खबर को लेकर बतौर रीडर आपके मन में
उठ रहे हों। जैसे- क्या हुआ, कब
हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, जिम्मेदार
कौन, अब आगे क्या हो सकता है, असर क्या होगा…। जवाब भी बिल्कुल छोटे-छोटे वाक्यों में और नंबरिंग करके
(1, 2, 3…) देने
चाहिए।
किसी का कोट हो या कोई बात ज्यादा हाईलाइट किए जाने लायक
हो तो उसे एक बॉक्स में दिखाया जा सकता है। यह सुविधाजनक तरीके से खबर प्रेजेंट
करने का बेसिक तरीका है। अगले चरण में आप कंटेंट को ऑडियो, वीडियो, इंफोग्राफ, इंटरएक्टिव इंफोग्राफ, इलस्ट्रेशन आदि किसी भी तरीके से प्रेजेंट कर सकते हैं।
मल्टीमीडिया तकनीक के जरिए कहानी को बेहद प्रभावी ढंग से
कहा जा सकता है।
कंटेंट डिस्ट्रिब्यूशन
वेब जर्नलिस्ट जो कंटेंट तैयार करता है उसे प्रेजेंट करने के साथ-साथ डिस्ट्रिब्यूट करने (रीडर्स तक पहुंचाने) में भी उसकी अहम भागीदारी होती है। वेब कंटेंट को डिस्ट्रीब्यूट करने का एक बड़ा जरिया सर्च इंजन (गूगल, बिंग, याहू आदि) और सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि) है। इनके जरिए कंटेंट ज्यादा से ज्यादा रीडर्स तक पहुंच सके, यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना चाहिए-
वेब जर्नलिस्ट जो कंटेंट तैयार करता है उसे प्रेजेंट करने के साथ-साथ डिस्ट्रिब्यूट करने (रीडर्स तक पहुंचाने) में भी उसकी अहम भागीदारी होती है। वेब कंटेंट को डिस्ट्रीब्यूट करने का एक बड़ा जरिया सर्च इंजन (गूगल, बिंग, याहू आदि) और सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि) है। इनके जरिए कंटेंट ज्यादा से ज्यादा रीडर्स तक पहुंच सके, यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना चाहिए-
की-वर्ड्स: की-वर्ड्स वे शब्द हैं जिन्हें टाइप कर रीडर इंटरनेट पर
किसी टॉपिक को सर्च करता है। वेबसाइट पर कंटेंट अपलोड करते वक्त इस बात का पूरा
ख्याल रखना चाहिए कि उससे संबंधित सही और सटीक की-वर्ड्स भरे जाएं। इससे इंटरनेट
पर सर्च करने वाले रीडर्स को आपकी खबर स्क्रीन पर पहले दिखने की संभावना बढ़ जाती
है। इसे सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (एसईओ) कहते हैं।
कुछ कीवर्ड तो सामान्य होते हैं, पर कुछ गूगल (सबसे बड़ा सर्च इंजन) और सोशल मीडिया पर ज्यादा
से ज्यादा लोगों के इस्तेमाल के चलते ट्रेंड कर गए होते हैं। सामान्य की-वर्ड्स
के अलावा इन ट्रेंडिंग की-वर्ड्स का इस्तेमाल जरूरी है। गूगल पर किसी टॉपिक से
संबंधित सामान्य की-वर्ड टाइप करते ही उससे जुड़े ट्रेंडिंग की-वर्ड्स स्क्रीन
पर दिखाई दे जाते हैं। वैसे ही सोशल मीडिया पर ट्रेडिंग टॉपिक्स की लिस्ट फ्लैश
होती है। इनका इस्तेमाल करने से कंटेंट ज्यादा से ज्यादा रीडर्स तक पहुंचने की
संभावना बढ़ जाती है।
शेयरिंग: कंटेंट अपलोड करते ही उसे सोशल मीडिया पर शेयर करना जरूरी
है। भारत में कंटेंट डिस्ट्रिब्यूशन के लिहाज से फेसबुक सोशल मीडिया का सबसे बड़ा
प्लैटफॉर्म (वीडियो कंटेंट के लिए यूट्यूब) है। शेयरिंग के दौरान संबंधित हैशटैग
और टैगिंग फीचर का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है।
ब्लॉग, माइक्रोवेबसाइट्स, सोशल कम्युनिटीज आदि के जरिए भी कंटेंट को ज्यादा से ज्यादा
रीडर्स तक पहुंचाया जा सकता है।
वेब एनालिटिक्स…सबसे बड़ा टूल
वेब एनालिटिक्स: इसके बिना वेब जर्नलिस्ट अपना काम कर ही नहीं सकता। इसके जरिए उसे यह पता लगता है कि रीडर्स क्या और किस तरह का (मसलन, राजनीति में भी किस नेता या पार्टी के बारे में) कंटेंट पढ़ना चाहते हैं। वे आपकी वेबसाइट पर कितना एंगेज (एक बार साइट पर आने के बाद कितने पेज पढ़ रहे हैं) हो रहे हैं, कितना समय दे रहे हैं सब पता चलता है।
वेब एनालिटिक्स: इसके बिना वेब जर्नलिस्ट अपना काम कर ही नहीं सकता। इसके जरिए उसे यह पता लगता है कि रीडर्स क्या और किस तरह का (मसलन, राजनीति में भी किस नेता या पार्टी के बारे में) कंटेंट पढ़ना चाहते हैं। वे आपकी वेबसाइट पर कितना एंगेज (एक बार साइट पर आने के बाद कितने पेज पढ़ रहे हैं) हो रहे हैं, कितना समय दे रहे हैं सब पता चलता है।
·
एनालिटिक्स के जरिए ये जानकारियां मिलती हैं-
·
कितने रीडर्स आ रहे हैं कहां से आ रहे हैं।
·
किस समय आ रहे हैं ।
·
क्या पढ़ रहे हैं।
·
कितनी देर पढ़ रहे हैं।
·
क्या उन्हें सबसे अच्छा लग रहा है।
·
वे क्या सबसे ज्यादा शेयर कर रहे हैं।
·
वे किस खबर के बारे में सबसे ज्यादा बात कर रहे हैं और भी
बहुत कुछ…
वेब एनालिटिक्स का जितना गहराई से अध्ययन करेंगे, रीडर्स की रुचि का उतना बारीक आकलन कर सकेंगे। इसके आधार पर
आप अपनी कंटेंट स्ट्रैटजी तय कर सकते हैं। पर ध्यान रहे, यहां एक स्ट्रैटजी लंबे समय तक काम नहीं करती। कुछ सप्ताह
भी नहीं। इसलिए रियल टाइम प्लानिंग की सबसे ज्यादा जरूरत है। न्यू मीडिया हर
रोज बदलता है। कल इसका स्वरूप कैसा होगा, इसका अंदाजा आज नहीं लगाया जा सकता। पर एक बात तय है कि न्यू
मीडिया काफी तेज रफ्तार से मजबूत हो रहा है और लगातार होगा।
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