बाजारवाद की अंधी दौड़ ने समाज-जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, खासकर, पत्रकारिता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रही है। यह चिंता का विषय है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। विचार पंचायत इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
शुक्रवार, 27 अगस्त 2010
कहाँ तक सही है ?
आज जामिया मिल्लिया इस्लामिया विशाविध्यल्या में हिंदी विभाग के विभाग्यध्क्ष्य श्री अब्दुल बिस्मिल्हा जी ने कहा की समकालीन में मुस्लिम साहित्यकारों की पुस्तकों या रचनाओ को पढ़ा नहीं जा रहा है ,वे एक परिचर्चा में बोल रहे थे . परिचर्चा का विषय था ,साहित्य और आधुनिक समकालीन हिंदी , परिचर्चा के मुख्य अथिथि थे विवेक कुमार दुबे , बिसमिला जी ने कहा की प्रकाशको द्वारा भी मुस्लिम लेखको की अवहेलना की जाती है .आप सभी लेखक बंधू इस वक्तव्य को कहा तक उचित मानते है ? क्या सच में एसा हो रहा है ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
संचार क्या है सार्थक चिन्हों द्वारा सूचनाओं को आदान -प्रदान करने की प्रक्रिया संचार है। किसी सूचना या जानकारी को दूसरों तक पहुंचाना संचा...
-
आँकड़ों में, गुणवत्ता आश्वासन, और सर्वेक्षण पद्धति में, नमूना एक संपूर्ण आबादी का एक अनुमान के लिए एक सांख्यिकीय आबादी के भीतर से एक सबसेट ...
-
अवधारणा उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें